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बाहुबली के शरीर पर अंकित लताएँ, सर्प, वृश्चिक और छिपकलियाँ' हमें अनायास ही उनके प्रति भक्ति से अभिभूत कर देती हैं। प्रकृति की गोद में वृक्षों के नीचे चल रहे गुरुकुल, जन्मजात वैर त्यागकर हिल-मिल जानेवाली सिंही और गाय तथा उनके वच्चे, एवं परस्पर स्नेह-क्रीड़ा करनेवाले गज-सिंह, देवगढ़ की जैन कला में निश्चय ही प्रकृति का यथार्थ स्वरूप प्रस्तुत करते हैं।
15. उपसंहार इन चतुर्थ और पंचम अध्यायों में हमने देवगढ़ की कुछ उल्लेखनीय मूर्तियों पर प्रकाश डाला है।
हम सभी मूर्तियों का उल्लेख नहीं कर सके हैं : क्योंकि उनमें से अधिकांश खण्डित हो गयी हैं और कुछ उल्लिखित मूर्तियों से कोई विशेषता नहीं रखतीं। कुछ मूर्तियाँ चुरा ली गयी होंगी तथा कुछ भूगर्भ में पड़ी किसी पुरातत्त्ववेत्ता की कुदाल की प्रतीक्षा कर रही होंगी। तथापि हमने जिन मूर्तियों का अध्ययन यहाँ प्रस्तुत किया है, वे कला के विभिन्न विकास-क्रमों और पहलुओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व करती
हैं
इस अध्ययन में देव-शास्त्रों, साहित्यिक और पौराणिक उल्लेखों तथा परम्परागत मान्यताओं को आधार बनाया गया है, अन्यत्र उपलब्ध जैन, वौद्ध और वैदिक मूर्तियों से यथासम्भव तुलना की भी गयी है।
1. दे.-चित्र सं. 86। 2. दे.-चित्र सं. 86-88 । 3. दे.-चित्र सं. 871 4. दे.-चित्र सं. 86। 5.दे.--चित्र सं. 6.35 आदि।
210 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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