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धार्मिक जीवन
स्मारकों, अभिलेखों और अन्य स्रोतों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि देवगढ़ में जैन, वैष्णव तथा शैव धर्म समान रूप से विकास पाते रहे। जैन धर्म का प्रभाव यहाँ बहुत प्राचीन काल से प्रारम्भ होकर अबतक चल रहा है। वैष्णव और शैव धर्मों का प्रारम्भ गुप्तकाल से हुआ और सत्रहवीं शती तक चला। जैनों ने पर्वत की सुरम्य अधित्यका को तो अपनी निर्माणस्थली बनाया ही, उपत्यका पर भी कुछ मन्दिरों का निर्माण कराया।
____ अधित्यका पर के अधिकांश मन्दिर प्रायः अच्छी स्थिति में हैं, परन्तु उपत्यका पर एक भी स्मारक धराशायी हुए बिना नहीं रहा है। उनके अवशेष प्राप्त होते हैं। कदाचित् किन्हीं आक्रमणकारियों ने उपत्यका के मन्दिरों, जिनमें शैव और वैष्णव भी सम्मिलित थे, को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया और अधित्यका पर या तो वे किसी कारण से पहुँच नहीं सके या वहाँ भी स्मारकों के होने का उन्हें परिज्ञान नहीं था।
जैन धर्म का प्रचार देवगढ़ में पयाप्त रहा, यह तो विद्यमान स्रोतों से भलीभाँति प्रकट होता है पर उनसे यह प्रकट नहीं होता कि वह प्रचार किस रूप में रहा। स्मारकों की विशालता और विपुलता, मूर्तियों की कलात्मकता और अधिकता तथा अभिलेखों की बड़ी संख्या से धार्मिक प्रभावना की अधिकता का बोध तो होता है, पर उनसे यह नहीं जाना जा सकता कि वह प्रभावना समाज में किन विभिन्न रूपों में स्थान पाती थी।
मूर्तियों में तीर्थंकरों और यक्ष-यक्षियों की मूर्तियों का बहुत बड़ा अनुपात है, पर खजुराहो तथा ऐसे ही अन्य स्थानों की भाँति यहाँ जन-जीवन के विभिन्न पक्षों का अंकन बहुत ही कम हुआ है। इसी प्रकार अभिलेखों में भी मन्दिरों के निर्माण और मूर्तियों की स्थापना के अतिरिक्त किसी अन्य अनुष्ठान या धार्मिक-प्रभावना
1. उपत्यका की अधिकांश सामग्री इधर-उधर तथा अधित्यका पर ले जायी जा चुकी है तथापि उसके
अवशेष अपने मूलस्थान पर देखे जा सकते हैं।
धार्मिक जीवन :: 211
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