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________________ देवगढ़ में चरण पादुकाओं के अंकन तीन स्थानों पर प्राप्त हुए हैं। मं. सं. सात (चित्र 10) में स्थापित एक युगल चरण पादुका (चित्र संख्या 12 ) पर सं. 1963 का अभिलेख भी उत्कीर्ण है । इसी मन्दिर में बारह युगल - चरण पादुकाओं से अंकित ( दे. चित्र संख्या 12 ) एक और शिलाफलक स्थित है, जिसे पर्वत की उपत्यका में किसी ध्वस्त जैन मन्दिर से प्राप्त किया गया था। चरण पादुकाओं के इन बारह युगलों से अनुमान होता है कि इसी के समान एक अन्य शिलाफलक भी रहा होगा और इस प्रकार कलाकार ने चौबीस तीर्थंकरों की चरण पादुकाएँ दो शिलाफलकों पर उत्कीर्ण की होंगी, जैसा कि उसने कुछ चौबीसियों के मूर्त्यंकन में भी किया है । ' एक युगल-चरण पादुका मं. सं. चार की गुमटी के उत्तर-पूर्वी स्तम्भ पर उत्कीर्ण है। नव-ग्रह : देवगढ़ की जैन कला में नवग्रहों का अंकन द्वारों और तीर्थंकर मूर्तियों के अतिरिक्त देवी - मूर्तियों के साथ भी हुआ है । 1 इनके सम्बन्ध में चतुर्थ अध्याय में प्रतीकात्मक देव - देवियों के सन्दर्भ में विस्तार से विचार किया जा चुका है । शार्दूल : शार्दूलों का अंकन सज्जागत तत्त्वों के अन्तर्गत होता आया है। देवगढ़ में इन्हें उतनी लोकप्रियता प्राप्त नहीं हुई जितनी खजुराहो आदि में, यद्यपि विविधता की दृष्टि से देवगढ़ पीछे नहीं है । पशु-आकृति पर मनुष्य, शार्दूल, सिंह, हाथी, अश्व, गर्दभ आदि के मस्तक यहाँ दिखाये गये हैं ।" देवगढ़ में शार्दूल के पिछले पैरों के पास और अगले पैरों की लपेट में एक मनुष्याकृति दिखती है और उस ( शार्दूल) के पृष्ठभाग पर उसका नियमन करती हुई ( कभी कोई आयुध धारण किये हुए) दूसरी मनुष्याकृति दिखती है । प्रतीत होता है कि शार्दूल वासनाओं का प्रतीक है और नीचेवाली मानवाकृति व्यसनी पुरुष की, जो वासनाओं के चंगुल में पड़ चुका है । किन्तु संयमी एवं इन्द्रिय-विजेता पुरुष, जिसका प्रतीक ऊपरवाली मानवाकृति है, वासनाओं पर विजय प्राप्त कर रहा है । कुछ विद्वानों के अनुसार शार्दूल का इस प्रकार का अंकन विशुद्ध आलंकारिक प्रयोग है । मकरमुख : मकरमुख का अंकन सज्जागत तत्त्वों के अन्तर्गत होता है । ये 1. बारह मूर्तियों से अंकित एक शिलाफलक साहू जैन संग्रहालय में सुरक्षित है । 2. दे. - चित्र सं. छह, 18, 19-20, 35 आदि । 3. दे. - चित्र सं. 51, 63, 68 आदि । 4. जैन चहारदीवारी की उत्तरी बहिर्भित्ति में जड़ी हुई एक देवी मूर्ति में भी नवग्रह अंकित हैं । 5. दे. - मं. सं. 12 के गर्भगृह का प्रवेश द्वार । कुछ शार्दूल आकृतियाँ चित्र सं. 22 में कोष्ठकों की बायीं ओर भी देखी जा सकती हैं। इस अंकन में गजमुख शार्दूल विशेष आकर्षक है। यहाँ की कुछ तीर्थकर मूर्ति - फलकों पर भी शार्दूलों का अंकन हुआ है। दे. - चित्र सं. 51, 52 आदि। इनमें अश्वमुख शार्दूल दर्शनीय हैं। 202 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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