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न आदि है और न अन्त। यह दूसरी बात है कि वर्तमान मनुष्य उन तक पहुँच नहीं सका है।
मनुष्य द्वारा निर्मित प्राचीनतम जैन मूर्ति कौन है, यह विचारणीय है। पटना संग्रहालय में लोहानीपुर से प्राप्त मौर्यकालीन एक जैन मूर्ति प्रदर्शित है।' हड़प्पा में भी एक नग्न मूर्ति प्राप्त हुई है। इन दोनों मूर्तियों में परम्परा और लक्षणों की दृष्टि से इतनी अधिक समानता है कि हड़प्पा की मूर्ति को जैन कहने में संकोच नहीं होता। स्व. प्रो. प्राणनाथ विद्यालंकार (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय) ने सिन्धु घाटी में ही प्राप्त एक मुद्रा (क्रमांक 449) पर 'जिनेश्वरः' पढ़ा था। यदि पर्याप्त प्रमाणों से यह सब सम्पुष्ट हो जाता है तो जैन मूर्ति की प्राचीनता अब से लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व मानी जाएगी।
प्राचीन जैन ग्रन्थों-आवश्यक चूर्णि, निशीथचूर्णि, वसुदेवहिण्डी, त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित, आदि में एक मनोरंजक घटना का वर्णन है : सिन्धु सौवीर के शासक उद्दायन के पास जीवन्तस्वामी की एक चन्दननिर्मित मूर्ति थी। यह मूर्ति भगवान् महावीर की थी, जिसे उनके जीवनकाल में ही निर्मित किये जाने के कारण 'जीवन्त-स्वामी' की मूर्ति कहा गया है। उज्जैन के शासक प्रद्योत ने अपनी एक दासी-प्रेमिका के द्वारा यह मूर्ति चोरी से प्राप्त कर ली और उसके स्थान पर तदनुरूप काष्ठ-निर्मित मूर्ति स्थापित करा दी थी। जीवन्त स्वामी की इस मूर्ति की परम्परा लगभग 550 ई. तक चलती रही।
अब से पचीस शताब्दी पूर्व जैन मूर्तियों का निर्माण होता था, यह तथ्य कलिंग-सम्राट् खारवेल के हाथी गुम्फा-अभिलेख से भी प्रमाणित है। इसके पश्चात् उपर्युक्त लोहानीपुर से प्राप्त मूर्ति उल्लेखनीय है।' दूसरी-तीसरी शती ई. पू. में लिखे 1. देखिए-(अ) विंसेण्ट ए. स्मिथ : ए हिस्ट्री आफ़ फ़ाइन आर्ट इन इण्डिया एण्ड सीलोन (बम्बई,
तृतीय संस्करण), पृ. 20 तथा फलक दश, आकृति (सी)।
(ब) आर.सी. मजूमदार : दी एज आफ़ इम्पीरियल यूनिटी, पृ. 426 । 2. देखिए-वी.ए. स्मिथ : ए हिस्ट्री आफ़ फ़ाइन आर्ट इन इण्डिया एण्ड सीलोन, फलक दो, आकृति
सी तथा डी। 3. और भी दे.-(अ) पं. सुमेरचन्द्र दिवाकर : जैन शासन (काशी, 1950), पृ. 313 ।
(ब) मुनि विद्यानन्द : श्रमण संस्कृति का इतिहास : सन्मति सन्देश (अगस्त 1969), पृ. 13। 4. विस्तार के लिए दे.-डॉ. उ.प्रे. शाह : जर्नल आफ़ दी ओरियण्टल इंस्टीट्यूट, जिल्द एक, अंक ___ एक, पृ. 72 तथा आगे और अंक 4, पृ. 358 तथा आगे। 5. डॉ. उ.प्रे. शाह : ए नोट आन दी अकोटा होई आफ़ जैन बोंजेज़ : बड़ौदा थू दी एजेज़, परि. 4,
पृ. 77 और आगे। 6. नन्दराज-नीतं च कलिंगजिनं संनिवेसं...गह रतनान पडिहारहि अंगमागध वसु च नेयाति (1)
-काशीप्रसाद जायसवाल : कलिंग-चक्रवर्ती महाराज खारवेल के शिलालेख का विवरण : नागरी प्रचारिणी पत्रिका : भाग 8, अंक 3, पृ. 16 से उत। 7. दे - आर.सी. मजूमदार : दी एज आफ इम्पीरियन इनिटी . 1245
192 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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