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यहाँ की मूर्तियाँ खजुराहो की कला की अपेक्षा काफी छोटी हैं, यही नहीं यहाँ ऐसे दृश्यों को उन महत्त्वपूर्ण स्थानों पर अंकित भी नहीं किया गया जिनपर खजुराहो में, और फिर ऐसे दृश्यों की संख्या भी यहाँ खजुराहो की अपेक्षा नगण्य है।
(ब) मण्डलियाँ
. देवगढ़ में धार्मिक अनुष्ठानों, सामाजिक उत्सवों, विभिन्न आनन्ददायी अवसरों आदि पर नृत्य, वाद्य और संगीत की मण्डलियाँ सक्रिय रहती थीं। यहाँ के मण्डली-दृश्यों में कभी केवल नृत्य, कभी केवल वाद्य और कभी दोनों का अंकन प्राप्त होता है।
___1. नृत्य-मण्डली : जैन चहारदीवारी की भीतरी (पश्चिमी) दीवार में प्रवेश-द्वार के दक्षिण में नृत्य-मण्डली का बहुत प्रभावोत्पादक अंकन हुआ है।' वाद्ययन्त्रों के लय और ताल पर पाद-विक्षेप करती हुई नर्तकियों की हस्तमुद्राएँ एवं मुखाकृतियाँ दर्शनीय हैं। सम्पूर्ण अंकन अत्यन्त कलापूर्ण है।
जैन चहारदीवारी में ही नृत्यमण्डली का एक और प्रभावशाली अंकन देखा जा सकता है।
मं. सं. बारह के अर्ध-मण्डप के तोरणों पर नृत्य-मण्डलियों के बहुत सुन्दर आलेखन हुए हैं।
देवगढ़ की नृत्य-मण्डलियों में अनुराग में सराबोर पुरुष-वर्ग कभी थाप देता है तो कभी नृत्य में अपनी प्रेयसियों का साथ। यहाँ नृत्य-मण्डलियों के अन्य अंकन जैन चहारदीवारी, मं. सं. चार, ग्यारह, बारह, बाईस आदि के द्वारों पर देखे जा सकते हैं, जिनमें नृत्य-मग्न स्त्री-पुरुषों के भावपूर्ण और सुरुचिसम्पन्न अंकन हुए हैं।
2. वाद्य-मण्डली : वाद्य-मण्डलियों के अत्यन्त समृद्ध एवं कलामय अंकन देवगढ़ की जैन कला में उपलब्ध होते हैं। वाद्य-यन्त्रों का प्रयोग नृत्य और संगीत आदि की मण्डलियों में हुआ है। स्वतन्त्र रूप से भी वाद्य-यन्त्रों का उपयोग हुआ है। स्त्री और पुरुष दोनों ही इस प्रकार की मण्डलियों में सम्मिलित पाये गये हैं। यहाँ की मण्डलियों में झाँझ, मँजीरा, मृदंग, ढोलक, वेणु, वीणा, इकतारा, तुरही, तमूरा, घंटा, शंख आदि अनेक प्रकार के वाद्य-यन्त्र प्रयुक्त पाये जाते हैं।"
1. दे.-चित्र सं. 571 2. दे.-चित्र सं. 1098 3. दे.-चित्र सं. 16, 21, 23 आदि। 4. दे.-चित्र सं. 57, 109, 118 आदि । 5. दे.-चित्र सं. 16, 18, 22, 23, 116, 121 आदि । 6. दे.-चित्रं सं. 16, 20, 22, 23, 25, 57, 109, 118 आदि ।
188 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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