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________________ 9. श्रावक-श्राविकाएँ श्रावक-श्राविकाओं की मूर्तियों का विधान भी साधु-साध्वियों की मूर्तियों की ही भाँति जैन मूर्ति - शास्त्र में दृष्टिगत नहीं होता । इस विधान का उल्लंघन, जहाँ तक साधुओं का प्रश्न है, भरत और बाहुबली की मूर्तियाँ बनाकर किया गया। परन्तु जहाँ तक श्रावक-श्राविकाओं का प्रश्न है, कहा नहीं जा सकता कि कब और किस रूप में इस विधान का उल्लंघन किया गया। मथुरा में शक - काल की जो मूर्तियाँ मिली हैं, उनमें एक श्राविका' की भी है। इस दृष्टि से उक्त उल्लंघन का सूत्रपात शक- काल में हुआ प्रतीत होता है । कदाचित् इसी समय से दानदाताओं और दानदात्रियों की मूर्तियाँ भी बनने लगीं । तीर्थंकर की पूजा - भक्ति करते हुए श्रावक - युगल भी इसके पश्चात् अंकित किये जाने लगे । फिर तो श्रावक-श्राविकाओं के दैनिक जीवन की विभिन्न झाँकियाँ भी प्रस्तुत की जाने लगीं । चन्देलों तथा कच्छपघातों का समय आने तक ये झाँकियाँ धार्मिक क्षेत्र से दूर हो गयीं और उनका सामाजिक महत्त्व भी कम रह गया । देवगढ़ में प्राप्त श्रावक-श्राविकाओं की मूर्तियों में धार्मिक तत्त्व ही अधिकतर हैं । दो-एक स्थानों पर ही ऐसे अंकन मिलते हैं जिन्हें चन्देलकालीन धर्मबाह्य अंकनों का पूर्वरूप कहा जा सकता है । देवगढ़ की उल्लेखनीय श्रावक-श्राविका - मूर्तियाँ 1. तीर्थंकर की माता : देवगढ़ में श्रावक-श्राविकाओं की मूर्तियों में सर्वाधिक उल्लेखनीय मूर्ति तीर्थंकर की माता की है। 2 इसकी लम्बाई 3 फुट 9/21⁄2 इंच और ऊँचाई बायें कोने पर 2 फुट 1 इंच तथा दायें कोने पर 1 फुट 9 इंच है। आसन पर क्रमशः हाथी, सिंह, सिंह, हाथी और बालकधारिणी देवी अंकित हैं । इनके पार्श्व में खड़ी एक देवी तीर्थंकर की माता को चँवर डुला रही है। माता दायीं करवट लेटी हैं। उनकी दायीं कोहनी शय्या पर टिकी है और उठी हुई हथेली पर शिर थमा है । बायाँ पैर दायें के पीछे, घुटने से लगभग 120° का कोण बनाता हुआ शय्या पर रखा है। बायें घुटने पर रखा बायाँ हाथ विश्राम ले रहा है। उस पर से लहराता हुआ 1. (अ) वी. ए. स्मिथ जैन स्तूप एण्ड अदर एण्टिक्विटीज़ ऑफ़ मथुरा ( इलाहाबाद, 1901), पृ. 21 तथा फलक 14। (ब) वासुदेवशरण अग्रवाल गाइड टु लखनऊ म्युजियम, पृ. 14 तथा आकृति एक । 2. दे. - चित्र सं. 93 | यह मूर्ति फलक मं. सं. चार के गर्भगृह की बायीं भित्ति में जड़ा हुआ है । 3. श्री दयाराम साहनी ने गलती से इसे 3 फुट साढ़े आठ इंच नापा था । दे. - ए. पी. आर. - 1918, परि. 'अ', अभि. क्र. 29, पृ. 141 Jain Education International For Private & Personal Use Only मूर्तिकला : 181 www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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