SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 3. शूकर को सम्बोधन : मं. सं. 12 के गर्भगृह के प्रवेश-द्वार के दायें पक्ष पर एक मुनि शूकर को सम्बोधित करते हुए अंकित हैं।' इस अंकन में सम्बोधित प्राणी की शरीराकृति मानवाकार है। जबकि मुखाकृति शूकर-जैसी।। 4. साधुविहार : देवगढ़ में मुनि-विहार से सम्बन्धित अनेक अंकन प्राप्त होते हैं। मं. सं. 12 के सामने पड़े हुए अवशेषों में एक द्वारपक्ष पर मुनि-विहार का सुन्दर निदर्शन हुआ है। कोई भक्त उनका अनुगमन कर रहा है और उनके सामने एक दूसरा भक्त चरणवन्दना करता हुआ दिखाया गया है। 5. निश्चल योगिराज : मं. सं. 12 के अर्धमण्डप के स्तम्भों पर तपस्यारत मुनि का अंकन अत्यन्त प्रभावोत्पादक है। दो कोष्ठकों में मुनि के दोनों ओर खड़ी हुई स्त्रियाँ उन्हें अपनी ओर आकृष्ट करने का प्रयत्न कर रही हैं किन्तु योगिराज अपनी साधना में ही लीन हैं। अतः ऐसा प्रतीत होता है कि ये स्त्रियाँ निश्चल योगिराज को रिझाने का निष्फल प्रयत्न कर रही हैं। 6. संवाहन कराते हुए मुनि : मं. सं. 18 के महामण्डप के प्रवेश-द्वार पर दो कोष्ठकों में एक-एक साधु लेटे हुए अंकित किये गये हैं। उनके पीछी-कमण्डलु दूर पड़े हैं और एक-एक स्त्री उनके दायें पैरों को ऊपर उठाकर संवाहन कर रही इसी द्वार पर इसी प्रकार का एक अंकन और भी हुआ है किन्तु उसमें मुनि का संवाहन कोई भक्त पुरुष कर रहा है। (द) ऐलक देवगढ़ की जैन मूर्ति कला में ऐलक का भी अंकन हुआ है। यहाँ के मं. सं. 15 के महामण्डप में ऐलक की एक विशाल मूर्ति अवस्थित है। मूर्ति में मात्र कोपीन और कटिसूत्र स्पष्ट दिखाई देते हैं। मुखमुद्रा प्रशान्त, निर्विकार और संसार से विरक्त अंकित है। 1. दे.-चित्र सं. 22। 2. दे.-चित्र सं. 901 3. दे.--चित्र सं. 161 4. दे.-चित्र सं. 91 और 116। 5. 'कोपीनमात्रवसनो करतल-भोजी स्थित्वासनेऽशनविधानपरः प्रकामम् ॥ स्वर्मोक्षमार्ग-निरतो विरतोऽन्यकार्यात् स्यादैलको निजरतः प्रतिमाप्रयोगी ॥' ---आ. कुन्थुसागर : श्रावक धर्म प्रदीप, पं. जगन्मोहन लाल सि. शा. सम्पा. (बनारस, 2481 वी. नि.), पद्य 21और उसकी व्याख्या। मूर्तिकला :: 179 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy