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________________ अन्य द्वार तोरण, मं. सं. 12 के अर्धमण्डप के सामने रखा हुआ है, जिसमें मध्यवर्ती पद्मासन तीर्थंकर मूर्ति के दायें अपने आचार्य से दो उपाध्याय अध्ययन कर रहे अथवा अपनी शंकाओं का निराकरण करा रहे हैं। इसके पश्चात् एक अन्य आचार्य अपने भक्त को सम्बोधित कर रहे हैं। मध्यवर्ती तीर्थंकर मूर्ति की वायीं ओर एक मुनि अपने उपाध्याय से अध्ययन में प्रवृत्त दिखाये गये हैं और इसके अनन्तर एक मुनि अपने विनम्र भक्तों को शास्त्र श्रवण करा रहे हैं। इस तोरण की टूटदार मेजें विशेष रूप से उल्लेखनीय कही जा सकती हैं। अन्य उल्लेखनीय उपाध्याय मूर्तियाँ मं. सं. एक के दक्षिण में ध्वस्त अधिष्ठान पर, साहू जैन संग्रहालय में तथा स्तम्भ संख्या दो (दक्षिण ओर), चार' आदि पर देखी जा सकती हैं। (स) साधु-मूर्तियाँ उपरिवर्णित आचार्य-उपाध्याय-मूर्तियों के अतिरिक्त देवगढ़ में साधुओं की अनेक स्वतन्त्र मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं। ___1. साधु द्वारा आहार ग्रहण : म. सं. 12 के गर्भगृह और प्रदक्षिणा पथ के प्रवेश-द्वारों के दायें पक्षों पर एक मुनि का अंकन इस प्रकार हुआ है : मुनि खड़े हैं। भक्त उनके चरणों का प्रक्षालन कर रहा है और उसकी पत्नी कलश लिये खड़ी है। यह आहार-दान का दृश्य है। इसे देखकर भ. ऋषभनाथ को प्रथम पारणा देते हुए राजकुमार श्रेयांस तथा उनके बड़े भाई राजा सोमप्रभ एवं भाभी रानी लक्ष्मीमती का स्मरण हो जाता है। 2. सम्बोधन : म. सं. 23 के प्रवेश-द्वार के दायें पक्ष पर एक मुनि का अंकन कदाचित् विहार की स्थिति में हुआ है, किन्तु मार्ग में किसी भक्त श्राविका के द्वारा विनय प्रदर्शित करने पर उसे सम्बोधित कर रहे हैं। मुनि अपने बायें हाथ में (टिंहुनी के पास) कमण्डलु लटकाये हैं, पीछी कन्धे पर रखे हैं तथा दायें हाथ को उपदेश-मुद्रा में किये सम्बोधित कर रहे हैं। उनके सामने एक श्राविका सविनय नमन करती हुई अंकित है। 1. दे.-चित्र सं. 82। 2: दे.-चित्र सं. 851 3-4. दे.-चित्र सं. 43। 5. दे.-चित्र सं. 22 और 23 । 6. आ. जिनसेन : महापुराण (आदिपुराण), जिल्द एक, पर्व 20, श्लोक 100 तथा 126 । 7. इसी प्रकार का एक अंकन मं. सं. अठारह के महामण्डप के प्रवेश-द्वार पर भी देखा जा सकता 178 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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