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तर्जनी दबाये हुए है। मुखमुद्रा शान्त, सौम्य और गम्भीर बन पड़ी है। उनके दायें पार्श्व में पीछी और कमण्डलु दिखाये गये हैं। चौकी के समतल पर दोनों ओर एक-एक श्राविका हाथ जोड़े हए बैठी हैं। चौकी के नीचे संख्या 1333 का पाँच पंक्तियों में एक अभिलेख उत्कीर्ण है, जिसमें नन्दिसंघीय बलात्कार गण के आचार्य कनकचन्द्र देव, उनके शिष्य लक्ष्मीचन्द्र देव और उनके भी शिष्य हेमचन्द्र देव तथा कुछ अन्य नाम अभिलिखित हैं।' इस मूर्ति की ऊँचाई 2 फुट 1/2 इंच तथा चौड़ाई | फुट 6 इंच है।
3. तीर्थंकर के परिकर में उपाध्याय मूर्तियाँ : उपाध्याय की दो मूर्तियाँ एक शिलाफलक पर एक तीर्थंकर मूर्ति के परिकर के रूप में भी प्रस्तुत की गयी हैं। दोनों उपाध्यायों के बीच एक टूटदार मेज रखी है। दायीं ओर के उपाध्याय जी का दायाँ हाथ ऊपर को उठा है, वे दूसरे उपाध्याय से या तो कुछ माँग रहे हैं या उन्हें कुछ समझा रहे हैं। दूसरे उपाध्याय के बायें हाथ में पुस्तक है जबकि दायाँ हाथ खण्डित है।
4. तोरण पर अध्यापनरत उपाध्याय : एक तोरण एक ही साथ छह अध्यापनरत उपाध्यायों को प्रस्तुत करता है। यह तोरण द्वितीय कोट के प्रवेश-द्वार पर संयोजित किया गया है, जो परकोटे के निकट ही नदी की ओर से लाया गया था। इसके सामने की ओर मध्य में तीर्थंकर की एक कायोत्सर्ग मूर्ति है। इस मूर्ति के दोनों पार्यों में एक-एक आकृति उसकी उपासना में मग्न दिखाई गयी है। उसकी बायीं ओर पाठशाला का एक मनोज्ञ दृश्य अंकित है। उपाध्याय परमेष्ठी अपने बायें हाथ में पीछी लिये हैं तथा दायाँ वरदमुद्रा में किये आसीन हैं। इनकी दायीं ओर पाँच मुनि अंजलिबद्ध दिखाये गये हैं, जो कदाचित् अपने उपाध्याय से अग्रिम पाठ हेतु अभ्यर्थना कर रहे हैं।
उपाध्याय की बायीं ओर हाथ जोड़े हुए दो अन्य मुनियों का अंकन है जो एक अन्य उपाध्याय की ओर उन्मुख हैं। दूसरे उपाध्याय की ठीक बायीं ओर भी उन्हीं की ओर मुख किये एक मुनि प्रदर्शित हैं। इन मुनि के बाद एक तीसरे उपाध्याय का अंकन है, जिनकी बायीं ओर एक अंजलिबद्ध साधु अंकित हैं। तीर्थंकर मूर्ति की वायीं ओर भी उपर्युक्त दृश्यावलि ही कुछ विशेषताओं के साथ पुनः प्रस्तुत की गयी है।
5. अन्य उपाध्याय मूर्तियाँ : उक्त तोरण (चित्र संख्या 81) की भाँति एक
1. सम्पूर्ण अभिलेख के लिए देखिए--परि. दो, अभि.क्र. तीन । 2. पं. गं. चार के गर्भगृह में पश्चिमी भित्ति में जड़ा हुआ। 3. . --निज सं. । 1. द. -चित्र सं...।।
मूर्तिकला :: 177
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