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________________ तथा मथुरा, अजन्ता, गान्धार, भुवनेश्वर, खजुराहो आदि में भी पाये गये हैं, परन्तु इतनी सूक्ष्मता, विविधता और विस्तार कहीं नहीं है । पाठशाला के इस प्रकार के दृश्यों को अंकित करने की प्रेरणा खजुराहो के कलाकार ने निःसन्देह देवगढ़ के कलाकार प्राप्त की थी । ( ब ) उपाध्याय मूर्तियाँ देवगढ़ में उपाध्याय परमेष्ठी का अंकन आचार्यों के सान्निध्य में तथा विभिन्न पाठशाला दृश्यों में तो हुआ ही है, स्वतन्त्र रूप से भी उनकी अनेक मूर्तियों का निर्माण यहाँ हुआ है। उनमें से कुछ का विवरण प्रस्तुत है । 1 1. पद्मासनस्थ उपाध्याय मूर्ति : उपाध्याय परमेष्ठी की एक सुन्दर मूर्ति' सम्प्रति साहू जैन संग्रहालय में सुरक्षित है । 2 1 फुट 11 इंच ऊँचे तथा 1 फुट 7 इंच चौड़े शिलाफलक पर 1 फुट 2 इंच ऊँचे और 11 इंच चौड़े उपाध्याय परमेष्ठी पद्मासन में अंकित हैं। उनके बायें हाथ में ग्रन्थ है जबकि दायाँ वितर्क मुद्रा में है यह देखकर धर्मप्रवर्तन मुद्रा का स्मरण सहज ही हो आता है। इनके दायें एक बालक हाथ जोड़े हुए विनय-भाव प्रदर्शित कर रहा है। उपाध्याय की मुखमुद्रा प्रसन्न, शान्त और प्रभावोत्पादक है । इनके पृष्ठभाग में पत्रावलि का सुन्दर अलंकरण है। इसका निर्माणकाल नौवीं दसवीं शताब्दी प्रतीत होता है। इस मूर्तिफलक में सबसे ऊपर लघु आकार में पाँच तीर्थंकर (दो कायो. + एक पद्मा. + दो कायो ) भी अंकित हुए हैं। 2. अभिलिखित उपाध्याय मूर्ति : शिल्पचातुर्य, भावभंगिमा, कलाप्रियता आदि अनेक दृष्टियों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपाध्याय परमेष्ठी की एक सर्वांग- सुन्दर मूर्ति यहाँ और भी प्राप्त हुई है। उपाध्याय एक ऊँची चौकी पर उत्थित पद्मासन में बैठे हैं । उस चौकी से जुड़ी हुई एक छोटी चौकी पर उनका दायाँ चरण तथा बायें चरण की अँगुलियाँ रखी हैं। इनका दायाँ हाथ उपदेशमुद्रा में वक्ष तक ऊपर उठा है तथा बायाँ जंघा पर रखा है। उसकी खुली हथेली पर ग्रन्थ रखा है, जिसे 1. दे. - चित्र सं. 84 । 2. इसे पर्वत के जैन स्मारकों में से यहाँ लाकर प्रदर्शित किया गया है। 3. दे. - चित्र सं. 83 1 4. सम्प्रति देवगढ़ ग्राम में दिगम्बर जैन चैत्यालय में सुरक्षित । 5. कनिंघम, फुहरर, साहनी आदि पुरातत्त्व अन्वेषकों को यह मूर्ति उपलब्ध नहीं हो सकी थी। क्योंकि मं. सं. 12 के गर्भगृह के टूटे हुए वेंड़े ( सहतीर) को सुरक्षा की दृष्टि से सम्हालने हेतु उक्त विद्वानों के पर्यटन के पूर्व ही लोक निर्माण विभाग द्वारा एक दीवार का निर्माण कराया गया था। उस दीवार में एक मूर्ति भी पत्थर के रूप में समाविष्ट कर दी गयी थी। अभी कुछ वर्ष पूर्व श्री परमानन्द बरया ने बड़ी सावधानी के साथ उस दीवार को हटाया था, दीवार की सामग्री में यह महत्त्वपूर्ण मूर्ति भी प्राप्त हुई । 176 :: देवगढ़ की जैन कला एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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