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में इनका आलेखन मन्दिरों के प्रवेश-द्वारों पर तो हुआ ही है, मूर्तिफलकों पर भी प्राप्त होता है । ये कभी खड़े और कभी बैठे' अंकित किये गये हैं । नवग्रहों को मूर्तिफलकों पर, देवगढ़ के अतिरिक्त अन्य जैन कला केन्द्रों पर कदाचित् ही पाया गया है। 5
मन्दिरों के प्रवेश-द्वारों और तोरणों पर इन्हें अंकित करने की प्रथा मध्यकाल में बहुत प्रचलित थी । उदयगिरि की अमृत - गुफा ( संख्या 9) तथा रहली (सागर) के सूर्य मन्दिर के अतिरिक्त सेरोन, 7 बानपुर, बजरंगगढ़, " खजुराहो " आदि के जैन - मन्दिरों में इन्हें स्थान दिया गया है।
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(द) गंगा-यमुना और नाग - नागी
गंगा-यमुना और नाग- नागी का स्थापत्य से सम्बन्ध लगभग 300 ई. से द्वार-स्तम्भों पर प्राप्त होता है । महाकवि कालिदास ने गंगा और यमुना के मूर्तरूप का उल्लेख किया है :
“ मूर्ते च गङ्गा-यमुने तदानीं समाचरे दैवमसेविषताम् ।।”
अतः स्पष्ट है कि उनके युग में गंगा-यमुना के मूर्त्यांकन होने लगे थे । यद्यपि पौराणिक दृष्टि से गंगा-यमुना के साथ नाग- नागी का कोई सम्बन्ध नहीं है, तथापि गंगा-यमुना के साथ नाग-नागियों का सामीप्य भी गुप्तकाल से विशेष रूप से मिलने
1. दे. - मं. सं. चार, पाँच (चित्र सं. 6), ग्यारह, बारह ( चित्र सं. 18-20 ), तीस, इकतीस (चित्र सं. 35) आदि ।
2. दे. - चित्र सं. 51, 63, 68 1
3. खड़े प्रायः द्वारों और तोरणों पर ।
4. बैठे प्रायः मूर्तिफलकों पर ।
5. ( अ )
मथुरा संग्रहालय में एक ऐसी मूर्ति (सं- बी. 75) प्रदर्शित है जिसके पृष्ठभाग में कुबेर और नवग्रहों का आलेखन हुआ है।
( ब ) सिंहपुर ( जिला शहडोल, म.प्र.) के एक जैन मन्दिर ( नौवीं शती) में स्थित मूर्तिफलक पर भी नवग्रह अंकित हैं।
6. प्रो. कृष्णदत्त वाजपेयी सागर थ्रू दी एजेज ( सागर, 1935 ), फलक 10, आकृति (अ) । 7. दे. - मं.सं. पाँच के प्रवेश द्वार का तोरण ।
8. दे. - सहस्रकूट जिनालय के पूर्वी और पश्चिमी द्वारों के तोरण |
9. दे. - बजरंगगढ़ (गुना) के जैनमन्दिर का प्रवेश-द्वार ।
10. दे. - पार्श्वनाथ मन्दिर आदि ।
11. कुमारसम्भव: कालिदास- ग्रन्थावली, पाण्डेय तेजराम शास्त्री सम्पादित (काशी, 1961 ई.), सर्ग 7
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164 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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