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________________ (ब) लक्ष्मी लक्ष्मी', धन-धान्य आदि सर्व-प्रदात्री देवी मानी गयी है ।" प्राचीनकाल से ही इसकी उपासना और मान्यता प्रमुख देवियों में होती आयी है । कला में इसका अंकन बहुत प्राचीनकाल से प्राप्त होता है । साँची, भरहुत, मथुरा, कौशाम्बी, भाजा, बसाढ़ (वैशाली), अमरावती, देवगढ़, बेसनगर, राजघाट, एलोरा प्रभृति अनेक प्राचीन कला - केन्द्रों में लक्ष्मी के मनोरम अंकन उपलब्ध हुए हैं। विदेशों में भी लक्ष्मी से सम्बन्धित मूर्तियों तथा मन्दिरों का निर्माण हुआ। इससे निष्कर्ष निकलता है कि सुदूर पूर्व तक इसकी पूजा का प्रचार हुआ था । 5 उपनिषद्, पुराणों, साहित्यिक ग्रन्थों, 7 अभिलेखों और मूर्ति-विज्ञानसम्बन्धी ग्रन्थों में लक्ष्मी के मूर्ति निर्माण विधान का विस्तृत विवेचन उपलब्ध होता 1. इसके विस्तृत और प्रामाणिक परिचय के लिए देखिए - डॉ. राय गोविन्दचन्द्र प्राचीन भारत में लक्ष्मी प्रतिमा (वाराणसी, 1964 ई.), सम्पूर्ण शोध-प्रबन्ध । 2. (अ) भोज : समरांगण सूत्रधार, म.म. टी. गणपति शास्त्री सम्पादित (बड़ौदा, 1924 ई.), खण्ड एक, प. 122, 8। (ब) प्राचीन भारत में लक्ष्मी प्रतिमा, पृ. 37 तथा 114 । 3. प्रो. कृष्णदत्त वाजपेयी : भारतीय साहित्य और कला में लक्ष्मी त्रिपथगा ( नवम्बर, 1955), पृ. 25-26 1 4. विदेशों में विद्यमान लक्ष्मी- मूर्तियों और मन्दिरों के विवरण के लिए देखिए - (अ) डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल : लम्पसकस से प्राप्त भारत लक्ष्मी की मूर्ति नागरी प्रचारिणी पत्रिका, विक्रमांक (वैशाख - माघ, 2000 विक्रम सं.) पृ. 39-42 (ब) हेनरिक जिम्मर : दी आर्ट आफ इण्डियन एशिया (न्यूयार्क 1955), भाग दो, फलक 564 वी (स) भिक्षु चिम्मनलाल जब शिवजी ने जापान को चीन के हमले से बचाया धर्मयुग ( 12 फरवरी, 1961 ई.), पृ. 9 पर मुद्रित लक्ष्मी की मूर्ति । 5. सौभाग्यलक्ष्म्युपनिषद् : ईशाद्यष्टोत्तरशतोपनिषद् ( बम्बई, 1925 ई.), 1, 28-29। 6. दे. - डॉ. राय गोविन्दचन्द्र : पुराणों में लक्ष्मी का स्वरूप : प्राचीन भारत में लक्ष्मी प्रतिमा, पृ. 33-57। 7. दे- (अ) प्राचीन बौद्ध तथा जैन साहित्य में लक्ष्मी का स्वरूप : वही, पृ. 29-32 । (व) प्राचीन संस्कृत साहित्य में लक्ष्मी का स्वरूप वही, पृ. 58-75 1 8. दे. - (अ) भारतीय मुद्राओं और मोहरों पर तथा अभिलेखों में लक्ष्मी तथा श्री : वही, पृ. 76-781 ( ब ) भारतीय अभिलेखों में लक्ष्मी : वही, पृ. 89-91। 9. (1) भोज : समरांगणसूत्रधार, खण्ड 1, पृ. 47-2981 (2) पी. के. आचार्य : मानसार आन आर्किटेक्चर एण्ड स्कल्पचर ( लन्दन, 1932), परिवार विधान अध्याय 32-72 (पृ. 197 ) तथा अध्याय 54, 19-31 (पृ. 356-57 ) | ( 3 ) सोमेश्वर दत्त : मानसोल्लास (बड़ौदा, 1939 ई.) प्रथम प्रकरण 77-971 (4) श्रीकुमार: शिल्परनम् : के. साम्बशिव शास्त्री सम्पादित ( त्रिवेन्द्रम 1929 ई.), पृ. 143-44 । (5) टी. ए. गोपीनाथ राव : एलीमेण्ट्स ऑफ़ हिन्दू आइकोनोग्राफी, प्रथम खण्ड (मद्रास, 1914 ई.), पृ. 235-371 162 :: देवगढ़ की जैन कला एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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