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________________ 3. मं. सं. 19 में स्थित सरस्वती मूर्ति : मन्दिर संख्या 19 में सरस्वती' की एक विशाल (5' * 2' 2") खड़ी मूर्ति अवस्थित है । इस अत्यन्त सुन्दर देवी का शिर मूर्तिभंजक द्वारा खण्डित कर दिया गया है, तथापि उसकी मनोहर वेश-भूषा और प्रभावोत्पादक अलंकरण आदि उसकी पूर्वस्थिति का आभास देने में पूरी तरह समर्थ हैं। इसके पादपीठ में हंस वाहन के रूप में दिखाया गया है। उसके पार्श्व में एक दम्पती देवी की उपासना में रत है । उसके ऊपर दो-दो चौरीधारी सेविकाएँ सेवा में प्रवृत्त अंकित की गयी हैं । उनके भी ऊपर ( दायें) अपने दायें हाथ में ग्रन्थ और बायें में माला धारण किये आचार्य और (बायें ) पीछी - सहित आर्यिका उपासना में लीन हैं। उनके ऊपर दोनों ओर एक-एक कायोत्सर्गासन और उनके भी ऊपर एक-एक पद्मासन तीर्थंकर अंकित हैं । तत्पश्चात् दोनों ओर सशक्त उड़ान भरते हुए मालाधारी विद्याधरों के मध्य पद्मासन में एक तीर्थंकर का मनोरम आलेखन हुआ है। देवी के पायल, पाजेब, कटिबन्ध, भुजबन्ध, चन्द्रहार और स्तनहार के अतिरिक्त मुकुट भी भव्यता से निदर्शित है। इसके चारों हाथ खण्डित हो गये हैं । 4. सरस्वती की खड़ी मूर्ति सरस्वती की एक खड़ी मूर्ति मन्दिर संख्या 12 के अन्तराल की दायीं मढ़िया में अभी-अभी पास के किसी ध्वस्त अवशेषों में से लाकर स्थापित कर दी गयी है । इस चतुर्भुजी देवी के दायें ऊपरी हाथ में माला है और नीचे का वरद मुद्रा में है, बायें ऊपरी हाथ में सनाल कमल है जबकि नीचे का ताड़पत्रीय ग्रन्थ सँभाले हुए है। इसके पायल, पाजेब, कटिबन्ध, कंगन, बोंहटा, आरसी, कण्ठश्री, स्तनहार, कर्णाभरण और मुकुट अत्यन्त सुन्दरता से निदर्शित हैं पादपीठ के ऊपर इसके पार्श्व में दोनों ओर दो-दो सेविकाएँ उत्कीर्ण हैं। ऊपर तीन पद्मासन तीर्थंकरों का अंकन है। देवी की मुखमुद्रा सौम्य और प्रसन्न है । 1 5. अन्य सरस्वती मूर्तियाँ : सरस्वती के उक्त मूर्त्यंकनों के अतिरिक्त यहाँ के साहू संग्रहालय में विद्यमान विंशतिभुजी चक्रेश्वरी की एक अत्यन्त सुन्दर मूर्ति के ऊपरी भाग में (बायें) सरस्वती की भी एक मनोज्ञ और नयनाभिराम मूर्ति आलिखित है । " इसी प्रकार यहाँ के मन्दिर संख्या 11 और 31 (दे. चित्र 35 ) के प्रवेश द्वारों पर भी सरस्वती की सुन्दर मूर्तियाँ अंकित हुई हैं । 1. दे. - चित्र सं. 96। 2. दे. - चित्र सं. 95। 3. दे. - चित्र सं. 99 । Jain Education International For Private & Personal Use Only मूर्तिकला : 161 www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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