SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (द) प्रतीकात्मक देव - देवियाँ अन्य स्थानों की भाँति देवगढ़ में भी कुछ ऐसे देव - देवियों की भी मूर्तियाँ गढ़ी गयी हैं, जिन्हें हम प्रतीकात्मक कह सकते हैं। उदाहरण के लिए लक्ष्मी को सम्पत्ति का और सरस्वती को श्रुतदेवता का प्रतीक कहा जा सकता है।' (अ) सरस्वती की मूर्तियाँ" 1. मं. सं. एक के पीछे की सरस्वती मूर्ति : मं. सं. एक के पृष्ठभाग में बायें से दायें (उत्तर से दक्षिण ) जो सातवीं मूर्ति जड़ी है, उसके बायें पार्श्व में उत्कीर्ण की गयी मूर्ति सरस्वती ( खड़ी) है। उसके ऊपर के हाथों में अक्षमाला और कमल हैं तथा नीचे के बायें में पुस्तक और दायाँ अभयमुद्रा में है। मं. सं. 11 के 1. ( अ ) धीदायिनि नमस्तुभ्यं ज्ञानरूपे नमोऽस्तु ते । सुरार्चिते नमस्तुभ्यं भुवनेश्वरि ते नमः ॥ - जिनप्रभसूरि : भैरव पद्मावतीकल्प (शारदा स्तवन ), ( अहमदाबाद, 1937 ), परिशिष्ट 15, श्लोक 9 1 (ब) देवि श्री श्रुतदेवते भगवति त्वत्पादपङ्केरुह - द्वन्द्वे यामि शिलीमुखत्वमपरं भक्त्या मया प्रार्थ्यते । मातश्चेतसि तिष्ठ मे जिनमुखोद्भूते सदा त्राहि माम् । दृग्दानेन मयि प्रसीद भवतीं सम्पूजयामोऽधुना । - देवशास्त्र गुरु पूजा : बृहज्जिनवाणी संग्रह, पं. पन्नालाल बाकलीवाल सम्पादित ( कलकत्ता, 1937), पृ. 83-84 । 2. यहाँ मं. सं. 12 की बाह्य भित्तियों पर जो चौबीस यक्षियों का अंकन हुआ है, उनमें से चौथी ( अनन्तनाथ की ) यक्षी का नाम भी 'सरस्वती' उत्कीर्ण है। इसके अतिरिक्त जयसेन प्रतिष्ठा पाठ (शोलापुर, वी.सं. 2452) के अनुसार श्री आदि 10 देवियों में 'दसवीं' देवी का नाम भी 'सरस्वती' (श्लोक सं. 752 ) दिया गया है। 3. दे. - चित्र सं. 76 । 4. (अ) यह देवी वीणाधारिणी न होने पर भी सरस्वती ही है, जैसा कि निम्नलिखित लक्षण से स्पष्ट है : ‘अभयज्ञानमुद्राक्षमालापुस्तकधारिणी । त्रिनेत्रा पातु मां वाणी जटाबालेन्दुमण्डिता ॥' - मल्लिषेण: सरस्वतीकल्प : भैरवपद्मावतीकल्प ( अहमदाबाद, 1937), परिशिष्ट 11, पृ. 61 1 (ब) मुनि कान्तिसागरजी को बिलहरी (म.प्र.) से प्राप्त हुई सरस्वती - मूर्ति भी ऐसी ही है। उन्होंने महाकोसल की मूर्तियों का परिचय देते हुए उल्लेख किया है कि इस ओर की सरस्वती - मूर्तियों में वीणा नहीं पायी जाती। - द्रष्टव्य - खंडहरों का वैभव (काशी, 1959), पृ. 404 | (स) इसी प्रकार की सरस्वती की एक खड़ी धातु मूर्ति, जो वीणा धारण नहीं किये है, केन्द्रीय संग्रहालय इन्दौर में भी सुरक्षित है। वहाँ इसका आकार 3 फुट 4 इंच x 8 इंच है। इसके दायें निचले वरदमुद्रावाले हाथ में अक्षमाला है तथा -> :: 159 Jain Education International For Private & Personal Use Only मूर्तिकला www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy