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________________ विद्यादेवी का अंकन है। उसके तीन हाथों में वज्र, घण्टिका और फल विद्यमान हैं जबकि चौथा अभयमुद्रा में है 1 गौरी : इसी (मं. सं. 5) द्वार के बायें गौरी' नामक नौवीं विद्यादेवी का आलेखन है, जिसके हाथों में कमल, अक्षमाला, कुम्भ और मूसल हैं। उसका वाहन गोधा भी दिखाई देता है । महाकाली : मन्दिर संख्या 9 के प्रवेश द्वार के सिरदल पर मध्य में महाकाली विद्यादेवी उत्कीर्ण है । उसके ऊपर के दायें हाथ में वज्र, बायें में घण्टिका तथा नीचे दायाँ हाथ अभयमुद्रा में और बायें में अक्षमाला है। उसका वाहन नर भी अंकित हुआ है। इसी देवी का एक और अंकन मं. सं. 12 के गर्भगृह के प्रवेश-द्वार के सिरदल पर (बायें) 2 दर्शनीय है, वहाँ इसका एक हाथ अभयमुद्रा में और दूसरा कुछ खण्डित हो गया है। उसके शेष दो हाथों में वज्र और घण्टिका हैं। वाहन नर स्पष्ट देखा जा सकता है | महामानसी : मन्दिर संख्या पाँच के पश्चिमी द्वार के सिरदल पर (बायें) 3 महामानसी नामक सोलहवीं विद्यादेवी अंकित हुई है। उसके ऊपर के दायें हाथ में कृपाण और बायें में खेटक (ढाल ) एवं नीचे के बायें में कलश है तथा दायाँ व मुद्रा में है, और उसके दायें सिंह बैठा है । 1. (क) गौरी कनकवर्णाभा गोधावाहनसंस्थिता । वरदमूसलाक्षाब्जसमन्वितचतुष्करा ॥ (ख) तपस्विनां संयमबाधवर्जं प्रतिव्यधत्तात्मवदापदो यः । गोधागता हेमरुगब्जहस्ता गौरि प्रमोदस्व तदर्धनांशः ॥ (ग) यस्तीर्थकृन्नाम बबन्ध वैयावृत्त्ये स्फुरद्भावनयाग्रपुण्यम् । तं सेवमानामरविन्दहस्तामाराधयामो वरगौरि - देवीम् ॥ 2. दे. - चित्र सं. 18 और 19 । 3. -डॉ. द्वि. ना. शुक्ल : वही, पृ. 275 1 (क) सिंहासन - समासीना धवला महामानसी । वरासि-खेटकैर्युक्ता कुण्ड्या चैव चतुर्भुजा || -पं. आशाधर : प्र.सा., 3-151 Jain Education International - पं. नेमिचन्द्रदेव : वही, पृ. 287। - डॉ. द्वि. ना. शुक्ल : वही, पृ. 275 1 (ख) योधात् सधर्मस्थितिवत्सलत्वं रक्ता महामानसि तत्प्रणामे । रक्ता महाहंसगतेक्षसूत्र- वराङ्कुशस्रक्सहितां यजे त्वाम् ॥ 158 :: देवगढ़ की जैन कला एक सांस्कृतिक अध्ययन (ग) सधार्मिकेष्वाहितवत्सलत्वमाराधयन्तीं विभुमक्षमालाम् । मालां वरं चाङ्कुशमादधानां मान्ये महामानसि मानये त्वाम् ॥ - पं. आशाधर वही, 3-521 - पं. नेमिचन्द्रदेव : वही, पृ. 279 । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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