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________________ वेशभूषा उच्चकोटि की है। आसन पर दोनों ओर एक-एक स्त्री-आकृति, उसके ऊपर एक-एक चमरधारी पुरुषाकृति और उसके भी ऊपर उड़ान भरता हुआ मालाधारी विद्याधर - युगल आलिखित हैं । इन सबके ऊपर, मध्य में पार्श्वनाथ और उनके दोनों ओर एक-एक कायोत्सर्गासन और एक-एक पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियाँ अंकित हैं पद्मावती की यह मूर्ति इस सम्पूर्ण संयोजना के परिप्रेक्ष्य में इतनी भव्य बन पड़ी है कि उसे भारतीय कला के कतिपय निदर्शनों में से एक मानना होगा । 1 चौबीस यक्षियों की मूर्तियाँ: इन सबके अतिरिक्त देवगढ़ में मं. सं. 12 की बाह्य भित्तियों पर यक्षी मूर्तियों के अलग-अलग 24 शिलाफलक' जड़े हुए हैं। प्रत्येक शिलाफलक पर ऊपर तीर्थंकर की पद्मासन मूर्ति और नीचे यक्षी की खड़ी मूर्ति अंकित है। कुछ के वाहन भी प्रदर्शित हैं, जिनपर देवी को आसीन दिखाया गया है या जो देवी के निकट ही कहीं आलिखित हैं। यक्षी के नीचे उसका नाम और कभी-कभी तीर्थंकर के नीचे उसका नाम उत्कीर्ण है। इनमें से कुछ अस्पष्ट हो जाने से पढ़े नहीं जा सकते, और जो पढ़े जा सकते हैं, वे क्रमशः अग्रलिखित हैं 1. चक्रेश्वरी2, 4. भगवती सरस्वती, 6. सुलोचना, 8. सुमालिनी', 9. बहुरूपिणी, 10. श्रीयदेवी, 11. वाहिनी, 12. अभोगरोहिनी, 13. सुलक्षणा, 14. अनन्तवीर्या, 15. सुरक्षिता, 16. श्रीयदेवी (अनन्तवीर्या), (मयूरवाहिनी), 17. अरकरमी, 18. तारादेवी, 19. भीमदेवी, 20. ( नामरहित), 21. ( नामरहित), 22. अम्बिका, 23. पद्मावती 24. सिद्धिदायिका । इन यक्षी मूर्तियों का महत्त्व : यक्षियों की यह सूची कई कारणों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। प्रथम कारण यह है कि यक्षियों की मूर्तियों के साथ उनके नाम भी उत्कीर्ण मिलनेवाले केवल दो स्थानों में से यह एक है, दूसरा स्थान सतना जिले के पतौरा ग्राम के निकट पतियानदाई - मन्दिर है, जिसमें प्राप्त हुई अम्बिका - मूर्ति के 1. बहिर्भित्तियों पर इसी ढंग से जड़ी हुई मूर्तियों वाले मन्दिरों में 'पट्टदकल' के 'संगमेश्वर मन्दिर' और 'मल्लिकार्जुन - मन्दिर' उल्लेखनीय हैं। देखिए - लुइस फ्रेडरिक : इण्डियन टेम्पल्स एण्ड स्कल्पचर, पृ. 213 और 215, आकृति 193 और 199 । इसी परम्परा में और भी देखिए - 'पट्टदकल' में ही 'विरूपाक्ष' के दो मन्दिर, जिनका निर्माण क्रमशः 680 ई. और 740 ई. में हुआ था । द्रष्टव्य- आर्योलाजी इन इण्डिया (दिल्ली, 1950 ), फलक 29 तथा 30 1 2. ये अंक तीर्थंकरों के क्रमांक हैं। 3. दे. -- चित्र सं. 101 । 4. दे. - चित्र सं. 102 । 5. इस मन्दिर और उसमें प्राप्त यक्षी मूर्तियों के विस्तृत विवरण के लिए देखिए - पं. गोपीलाल अमर: पतियानदाई: एक गुप्तकालीन जैनमन्दिर, अनेकान्त, वर्ष 19, किरण 6, पृ. 340-46 6. यह मूर्ति अब प्रयाग - संग्रहालय में प्रदर्शित है। 156 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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