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________________ शक्ति का बोध होता है, भैरव - पद्मावती - कल्प में उसे वन्ध्या को भी पुत्र देनेवाली कहा गया है । ' धरणेन्द्र और पद्मावती की मूर्तियाँ : धरणेन्द्र की मूर्तियाँ अधिकांशतः पद्मावती के साथ ही प्रदर्शित की गयी हैं । यह राजलीलासन में आसीन होता है और उसकी बायीं गोद में पद्मावती आसीन होती है। इसका बायाँ हाथ कभी-कभी पद्मावती के दायें या बायें कन्धे पर स्थित रहता है। दोनों के एक-एक हाथ में नारिकेल या मातुलिंग होता है और कभी-कभी दोनों की या केवल पद्मावती की गोद में एक बालक होता है । मं. सं. 24 में जड़ी मूर्तियाँ : ( धरणेन्द्र - पद्मावती) : मं. सं. 24 की पश्चिमी बहिर्भित्ति में जड़े हुए एक शिलाफलक पर यह युगल' अत्यन्त भव्यता से आलिखित है । दोनों की परस्पर स्नेहसिक्त किन्तु इष्टदेव के प्रति समर्पण की मुद्रा और भव्य वेश-भूषा दर्शनीय बन पड़ी है। दोनों की गोद में बालक और दायें हाथ नारिकेल है । पृष्ठभाग में आलिखित वृक्ष पर फणावलि - सहित पार्श्वनाथ का अंकन है । इसी मन्दिर के गर्भगृह में स्थित इस युगल की एक अन्य मूर्ति भी इसलिए उल्लेखनीय है कि धरणेन्द्र और पद्मावती दोनों की गोद में आसीन बालक अधोवस्त्र (धोती) पहने हैं। इस युगल की इन दोनों मूर्तियों को देवगढ़ की ऐसी शताधिक मूर्तियों का प्रतिनिधि माना जा सकता है। 1 पद्मावती की स्वतन्त्र मूर्ति : पद्मावती की स्वतन्त्र ( धरणेन्द्र के बिना ) मूर्तियाँ भी देवगढ़ में बहुत हैं।. साहू जैन संग्रहालय में स्थित उसकी एक मूर्ति 2 फुट 5 इंच ऊँचे और 2 फुट 2 इंच चौड़े शिलाफलक' पर अंकित है। उसका वाहन सिंह और गोद में बैठा बालक सदा की भाँति उपस्थित हैं । वह ललितासन में दर्शित है । वह बायें हाथ से बालक को सँभाले है और दायें हाथ में वज्र धारण किये है । भाव-भंगिमा और 1 1. मल्लिषेण: पद्मावती दण्डक : के.बी. अभ्यंकर सम्पादित ( अहमदाबाद, 1937), परिशिष्ट 5, पृ. 361 लक्ष्मी - सौभाग्यकरा जगत्सुखकरा वन्ध्यापि पुत्रायिता, नानारोगविनाशिनी अघहरा (त्रि) कृपाजो रक्षिका । रङ्कानां धनदायिका सुफल्ल वाञ्छार्थि - चिन्तामणिः, त्रैलोक्याधिपतिर्भवार्णवत्राता पद्मावती पातुः वः ॥12॥ 2. दे. - चित्र सं. 1101 3. दे. - चित्र सं. 107। 4. इस युगल की अन्य आकर्षक मूर्तियों के लिए द्रष्टव्य - चित्र सं. 108 तथा 109। 5. दे. - चित्र सं. 106 1 6. जैसा कि उल्लेख किया जा चुका है, यह प्रतिमा मं. सं. 12 के अन्तराल की दायीं मढ़िया से यहाँ स्थानान्तरित की गयी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only मूर्तिकला : ::155 www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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