________________
लघु-तीर्थकर आकृति के दोनों ओर मालाधारी विद्याधरों की सशक्त उड़ान भी दर्शनीय है।
इस मूर्ति के अतिरिक्त, इसी गर्भगृह में इस यक्षी की तीन मूर्तियाँ और भी हैं। कला की दृष्टि से ये भी प्रथम श्रेणी में रखी जाएँगी। इन तीनों की टोपियाँ, उक्त अम्बिका की टोपी से, जो सेनापति की टोपी से मिलती-जुलती है, भिन्न हैं। इन्होंने उक्त यक्षी के समान चूड़ियाँ न पहनकर कंकण पहन रखे हैं। इनके अधोवस्त्र (साड़ियाँ) विशेष आकर्षण की वस्तु हैं।
अम्बिका यक्षी की अन्य मूर्तियाँ : इस यक्षी की सैकड़ों मूर्तियाँ जैन चहारदीवारी, विभिन्न मन्दिरों में तथा उनके द्वारपक्षों पर और स्तम्भों आदि पर देखी जा सकती हैं। इसकी बहुत-सी मूर्तियाँ द्वितीय कोट के प्रवेश-द्वार से मन्दिरों की
ओर जानेवाले मार्ग के दोनों ओर प्रस्तर-निर्मित छोटे-छोटे चबूतरों पर भी दर्शनीय हैं। कुछ मूर्तियाँ साहू जैन संग्रहालय में प्रदर्शित हैं।
पद्मावती : देवगढ़ के कलाकार ने, यक्षियों में अम्बिका के पश्चात् पद्मावती की ही मूर्तियाँ सर्वाधिक उत्कीर्ण की हैं। यहाँ उनकी भी संख्या कई सौ तक पहुँच गयी है। ये सभी मूर्तियाँ दो भागों में रखी जा सकती हैं : एक वे जिनमें केवल पद्मावती गोद में एक बालक को लिये हुए बैठी होती है और दूसरी वे जिनमें वह अपने पति के वाम-पार्श्व में या गोद में बैठी होती है तथा उन दोनों की गोद में या उनमें से किसी एक की गोद में एक-एक बालक होता है। कभी-कभी इन दोनों प्रकार की मूर्तियों में वे खड़े भी दिखाये जाते हैं।
जैसा ऊपर कहा जा चुका है, कलाकार ने धरणेन्द्र-पद्मावती के मूर्त्यकन में अत्यधिक स्वेच्छाचारिता से काम लिया है। उसने धरणेन्द्र-पद्मावती के शास्त्रीय स्वरूप को पूर्ण रूप से तिलांजलि देकर उसका एक सर्वथा नवीन परन्तु अत्यन्त व्यावहारिक रूप गढ़ डाला है। धरणेन्द्र-पद्मावती के इस रूप-परिवर्तन ने अनेक कला-मर्मज्ञों और इतिहासकारों को भी भ्रम में डाल दिया है। उन्होंने इसके समीकरण में कुछ विचित्र कल्पनाओं का आश्रय लिया है। श्री दयाराम साहनी ने इन्हें कल्पद्रुम के नीचे स्थित सुषमा-सुषमा काल (अवसर्पिणी काल का प्रथम भाग) का सुखी युगल माना है, पर यह निरी कल्पना है क्योंकि इस प्रकार की मूर्तियाँ बनाने का न तो कोई विधान है और न परम्परा।
1. कुछ उल्लेखनीय अम्बिका मूर्तियों के लिए देखिए-चित्र सं. 103-105 तथा 109 । 2. एक सुन्दर अम्बिका मूर्ति के लिए दे.-चित्र सं. 104 । 3. कुछ उल्लेखनीय पद्मावप्ती-मूर्तियों के लिए देखिए-चित्र सं 106 से 110 तक। 4. दे.-चित्र सं. 106।। 5. दे.-चित्र सं. 107 से 110 तक। 6. एनुअल प्रो.रि., भाग दो (लाहौर, 1918 ई.), पृ. 9।
मूर्तिकला :: 153
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org