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थीं। अतः इनमें से कुछ के एक से अधिक मस्तक बनाये गये, जो उनके विशिष्ट बुद्धि-बल और प्रभाव के द्योतक थे।
इसी प्रकार, एक ही देव या देवी के दो हाथ अपर्याप्त प्रतीत हए क्योंकि उसे एक ही साथ अपने उपासकों को अभय और वर प्रदान करना था तथा अपने उपासक के शत्रुओं का हनन करना था, साथ ही उसे अपने विशिष्ट चिह्न के रूप में कुछ फल, फूल या आयुध आदि भी रखने होते थे। अतः चार', छह, दस, बीस और यहाँ तक कि 24 हाथों वाली देवियाँ भी कलाकार की छैनी से निर्मित होने लगीं। अब देवों और देवियों को पैदल दौड़ाना उनके भक्तों ने उचित न समझा। अतः किसी को गरुड़, किसी को हंस', किसी को महिष और किसी को सिंह आदि वाहनों की योजना की गयी, एक-दो देवियाँ तो पुरुष को ही अपना वाहन बना बैठीं।
महत्त्व का आरोपण-इन देवियों के महत्त्व और प्रवल शक्ति पर जन-साधारण का विश्वास प्राप्त करने के लिए भट्टारकों ने तीर्थंकर की वीतरागता का पूरा-पूरा लाभ उठाया। शत्रु के चढ़ आने पर किसी राजा की या रोग-शोक आ पड़ने पर किसी दुखिया की मदद के लिए वीतराग तीर्थंकर भला क्या दौड़ते, दौड़ते आये-कोई देव, कोई देवी। यह सब कल्पना की वस्तु न रहकर इतिहास
1. दे.-चित्र सं. 95 और 101 । मूर्ति विज्ञान सम्बन्धी कुछ ग्रन्थों में रोहिणी, वज्रशृंखला, नरदत्ता,
मनोवेगा, ज्वालामालिनी, महाकाली, मानवी, गौरी, अनन्तमती, महामानसी, विजया, अपराजिता
और पद्मावती आदि के चार हाथ वर्णित हैं। 2. प्रज्ञावती, विराटा, मानसी और जया नामक देवियों के छह हाथ होने के उल्लेख अपराजितपृच्छा
(पृ. 567-68) में प्राप्त होते हैं। 3. दे.-चित्र सं. 111। चक्रेश्वरी की एक दशभुजी मूर्ति म.सं. 19 में भी सुरक्षित है। मथुरा ___ संग्रहालय में भी चक्रेश्वरी की दशभुजी मूर्ति प्रदर्शित है। दे.-मूर्ति सं. डी छह। 4. दे.-चित्र सं. 99 और 100 । प्रतिष्ठातिलक (पृ. 340-41) के अनुसार चक्रेश्वरी के बीस भुजाएँ
होना चाहिए। देवगढ़ में इन दोनों मूर्तियों में वह विंशतिभुजी ही है। 5. कहीं-कहीं चौबीस भुजाओंवाली चक्रेश्वरी भी मिलती है। 6. अपराजितपृच्छा (पृ. 566) तथा प्रतिष्ठा सारोद्धार (अ. 3, श्लोक 156) के अनुसार चक्रेश्वरी का ___वाहन गरुड़ है। अपराजितपृच्छा (पृ. 568) के अनुसार महामानसी का वाहन भी गरुड़ है। 7. वज्रशृंखला तथा अनन्तमती नामक यक्षियों के वाहन हंस हैं। दे.-अपराजितपृच्छा, पृ. 567-68 | 8. कालिका नामक सातवीं यक्षी का वाहन महिष है। दे.-अपराजितपृच्छा, पृ. 567। 9. विजया (18वीं यक्षी) (दे.अपरा., पृ. 568), तथा अम्बिका (22वीं यक्षी) (दे --अपरा, पृ. 568
तथा प्रतिष्ठासारो., 3-176) का वाहन सिंह निरूपित किया गया है और भी दे.-चित्र सं. 103 से 105 तक। महामानसी नामक सोलहवीं विद्यादेवी का वाहन भी सिंह है। दे.-- डॉ. द्वि.ना. शुक्ल : वास्तुशास्त्र, जि. दो., पृ. 275 ।
144 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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