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जो या तो पूर्णरूपेण धराशायी हो चुका है या वर्तमान मन्दिरों में से अन्य कोई हो सकता है।
इस विशालाकार मूर्ति के दोनों ओर, प्रवेश-द्वार के भीतर दोनों ओर तथा द्वार के बाहर ऊपरी भाग में (दायें) 'अम्बिका' यक्षी की मूर्तियों और द्वार के नीचे (बायें) 'पार्श्व' यक्ष की मूर्तियों के अंकन होने से यह सम्भावना अधिक है कि प्रस्तुत मूर्ति बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ की होगी। इस मूर्ति की प्रमुख विशेषताओं और निर्माण काल के सम्बन्ध में दो उद्धरण पर्याप्त होंगे : उसी मन्दिर के गर्भगृह में शान्तिनाथ की विशाल खड्गासन प्रतिमा की ओर ध्यान दीजिए, जो अपने कलात्मक गुणों के कारण विशेष गौरवशाली है।
भामण्डल की सजावट तथा पार्श्वस्थ द्वारपालों का लावण्य व भाव-भंगिमा गुप्तकाल की कला के अनुरूप है; फिर भी परिकरों के साथ मूर्ति का तादात्म्य नहीं हो पाया। दर्शक के ध्यान का केन्द्र प्रधान मूर्ति ही है, जो अपने गाम्भीर्य व विरक्ति भाव युक्त कठोर मुद्रा द्वारा दर्शक के मन में भयमिश्रित पूज्य भाव उत्पन्न करती है। मन्दिर नं. 12 में रखी हुई खड़े शान्तिनाथ की महान् प्रतिमा (नं. 1) ऊँचाई, समय और अपने कलात्मक गुणों के कारण इन स्मारकों में सबसे अधिक गौरवशालिनी है। इस जिनमूर्ति के भामण्डल पर बने हुए सज्जा-तत्त्व तथा दक्षिण और वाम पार्श्व में स्थित दो-चौंरीदारों की लावण्यपूर्ण भंगिमा आज भी गुप्तकला का स्मरण दिलाती है। इस प्रकार इस मूर्ति में गुप्तकाल की अनेक विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं। इसका निर्माणकाल छठवीं शती के अन्त या सातवीं शती के प्रारम्भ में निर्धारित किया जा सकता है। इसके परिकर में नवग्रहों का आलेखन विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
मन्दिर संख्या 6 के मूलनायक
मन्दिर संख्या 6 के गर्भगृह में अवस्थित पद्मासन तीर्थंकर' मूर्ति को 700 ई. से कुछ पूर्व निर्मित हुआ मानेंगे। वैराग्य, शान्ति और तपस्या की त्रिवेणी बहाती
1. हमारी इस सम्भावना की पुष्टि के लिए दे.--श्री नीरज जैन : देवताओं का गढ़ : देवगढ़,
अनेकान्त, वर्ष 17, किरण 4, पृ. 168 । 2. डॉ. हीरालाल जैन : भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान (भोपाल, 1962), पृ348 | 3. डॉ. क्लॉज ब्रून : मध्यदेश के जैनतीर्थ : देवगढ़, जैनयुग, मई 1959 | 4. दे.-चित्र सं. 53 । 5. मं.सं. छह, जिसे हमने अव से लगभग 500 वर्ष प्राचीन ही माना है (दे. -- पृ. 136), में स्थित होने
पर भी इस मूर्ति को सातवीं शती ई. से पूर्व की कृति मानना होगा क्योंकि देवगढ़ में मूर्तियों का स्थानान्तरण बहुत हुआ है।
132 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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