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________________ भक्तों ने इसके चिह्न या यक्ष आदि का अन्वेषण या तो किया ही नहीं या वे ऐसा करने में असफल रहे, क्योंकि अभी कुछ वर्ष पूर्व तक इस मूर्ति के सामने 2 फुट 3 इंच के अन्तर से एक भित्ति खड़ी थी जिसमें प्रवेश करने के लिए 1 फुट 9 इंच चौड़ी एक खिड़की थी। इसमें से प्रवेश करके एक अन्धकारपूर्ण, बदबूदार और सकरी कोठरी में मूर्ति का चिह्न खोज निकालने का साहस कदाचित् ही किसी को होता। वर्तमान में इस भित्ति को हटा दिया गया है और एक 'गार्डर' (लोहे के शहतीर) द्वारा टूटी हुई कड़ी को सँभालकर उस भित्ति का उद्देश्य पूरा कर दिया गया है। इस मन्दिर के महामण्डप में, कुछ वर्ष पूर्व, गर्भगृह की ओर एक भित्ति खड़ी थी, इसमें पूर्व की ओर एक अभिलेख जड़ा हुआ था, जिसमें एक शब्द है-'श्री शान्तिनाथ चैत्यालये' । इस शब्द से भी प्रस्तुत मूर्ति के शान्तिनाथ की होने का भ्रम उत्पन्न हुआ दिखता है। वस्तुतः इस शब्द का प्रस्तुत विशालाकार मूर्ति से कोई सम्बन्ध नहीं, बल्कि यह अभिलेख ही अन्य मन्दिर से सम्बन्धित है। उस मन्दिर के नष्ट हो जाने पर, इसे सुरक्षा की दृष्टि से यहाँ लाकर उस भित्ति में जड़ दिया गया होगा जो उस समय महामण्डप की सुरक्षा की दृष्टि से बनायी जा रही होगी। दूसरी बात यह है कि इस अभिलेख में संवत् 1493 का उल्लेख है जबकि प्रस्तुत मूर्ति उक्त संवत् से अनेक शताब्दियों पूर्व निर्मित हो चुकी थी। तीसरी बात यह है कि इसी मन्दिर के अर्धमण्डप में संवत् 919 का और गर्भगृह में संवत् 1051 का" अभिलेख उत्कीर्ण है, जिनसे स्पष्ट है कि प्रस्तुत अभिलेख (संवत् 1493) में उल्लिखित 'शान्तिनाथ चैत्यालय', मन्दिर संख्या 12 से पृथक् ही कोई मन्दिर था, . . (अ) ए. कनिंघम : ए.एस.आई.आर. जिल्द 10, पृ. 100। (ब) ए. फुहरर : मानु. एंटि, इं., पृ. 1200 9. (अ) ए. कनिंघम : उपर्युक्त, पृ. 1001 (ब) दयाराम साहनी : एनु. प्रो. रि. 1918, पृ. 101 (स) श्री परमानन्द बरया ने भी इस भित्ति, खिड़की तथा अन्धकार आदि को स्वयं देखा था। 3. इन पंक्तियों के लिखे जाने के पश्चात् अभी-अभी देवगढ़ मैनेजिंग दि. जैन कमेटी के मन्त्री ने अपने पत्रांक 161 दि. 15-12-67 द्वारा सूचित किया है कि दिसम्बर 1967 में इस लोहे के 'गार्डर' को गर्भगृह में स्थान, प्रकाश और शोभा आदि के विस्तार की दृष्टि से हटा दिया गया है। तथा टूटी हुई कड़ी को, उसके नीचे ही एक आड़ा 'गार्डर' डालकर सँभाल दिया गया है। मैंने भी अपने जुलाई, 1968 के देवगढ़ प्रवास में उक्त तथ्य की पुष्टि पायी है। 4. अब यह अभिलेख साहू जैन संग्रहालय में सुरक्षित है। दे.-परि. दो, अभि. क्र.' पाँच। 5. दे.-म.सं. 12 के महामण्डप के सामने अवस्थित अर्धमण्डप में दक्षिण-पूर्वी स्तम्भ पर उत्कीर्ण अभिलेख । अभिलेख पाठ के लिए दे.--परिशिष्ट दो, अभिलेख क्र. एक। 6. यह अभिलेख म.सं. 12 के गर्भगृह के प्रवेश-द्वार की चौखट में बायें भीतरी पक्ष पर उत्कीर्ण है। मूर्तिकला :: 131 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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