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हुआ है। यह विशेषता देवगढ़ में भी अत्यन्त विरल है, अन्यत्र तो कदाचित् नहीं ही है।
इस दृष्टि से यह मूर्ति भारतीय मूर्तिकला में अपने ढंग की अद्वितीय मानी जा सकती है। इसके अंग-प्रत्यंग का अंकन और भावों की अभिव्यक्ति बहुत आकर्षक है। ऐसा क्रम साँची, एरण और देवगढ़ के ही दशावतार मन्दिर की मूर्तियों में प्राप्त होता है।
विशालतम मूर्ति
मन्दिर संख्या 12 के गर्भगृह में इसी श्रृंखला की एवं देवगढ़ की विशालतम मूर्ति स्थित है। इस मूर्ति की कुल ऊँचाई 12 फुट 4 इंच, पैरों से कमर तक की ऊँचाई 7 फुट 3 इंच, हाथ की नीचे की अंगुली से कन्धे तक की ऊँचाई 6 फुट 1 इंच, एक कन्धे से दूसरे कन्धे तक की चौड़ाई 3 फुट 6 इंच और जटाजूट से छत्र तक की ऊँचाई 1 फुट 8 इंच है।
काल के कराल थपेड़ों से यह महत्त्वपूर्ण मूर्ति बहुत कुछ खण्डित हो गयी है परन्तु भक्तों ने उसकी यथासम्भव जुड़ाई करा दी है, इसे सोलहवें तीर्थंकर 'शान्तिनाथ' की मूर्ति मानकर इस मन्दिर का नाम ही 'शान्तिनाथ मन्दिर' प्रचलित हो गया है जबकि शान्तिनाथ का चिह्न (हिरण) या यक्ष-यक्षी आदि कोई भी यहाँ दृष्टिगत नहीं होते। ऐसा प्रतीत होता है कि चाँदपुर, दूधई, बानपुर, मदनपुर, अहार, सेरोन, खजुराहो' आदि निकटवर्ती स्थानों पर विद्यमान इसी प्रकार की कायोत्सर्ग और विशालाकार शान्तिनाथ की मूर्तियों की समानता के कारण भक्तों ने इसे भी 'शान्तिनाथ' की मूर्ति कहना प्रारम्भ कर दिया।
1. दे.-चित्र सं. 51। 2. (अ) इस विषय में श्री कनिंघम पूर्णतः मौन हैं। वे इसे मात्र विशालाकार दिगम्वर प्रतिमा कहते
हैं। दे.-ए.एस.आइ.आर., जिल्द 10, पृ. 1001 (ब) श्री फुहरर ने, पता नहीं किस आधार पर इसे ऋषभनाथ की प्रतिमा लिखा है। दे.-मानुमेण्टल एंटिक्विटीज़ इन इण्डिया (इलाहाबाद, 1881), पृ. 120 । (स) श्री दयाराम साहनी ने, कदाचित् परम्परा के आधार पर ही इसे शान्तिनाथ
की प्रतिमा लिखा है। दे.-एनु. प्रो. रि.-1918, पृ. 10। 3. ऊँचाई 16 फुट 2 इंच। 4. ऊँचाई 14 फुट 6 इंच। 5. ऊँचाई 15 फुट। 6. ऊँचाई 11 फुट। 7. ऊँचाई 18 फुट। 8. ऊँचाई 14 फुट 4 इंच । 9. ऊँचाई 15 फुट।
130 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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