SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 3. तीर्थंकर मूर्तियाँ प्राचीनतम मूर्ति मन्दिर संख्या 12 के महामण्डप में स्थित एक पद्मासन मूर्ति देवगढ़ की प्राचीनतम मूर्तियों में से एक है। इसका आकार 4 फुट 2 इंच x 3 फुट 5 इंच है। इसका शिलाफलक वर्तमान में 3 फुट 8 इंच ऊँचे और 2 फुट 4% इंच चौड़े सिंहासन पर स्थित है। और वर्तमान में दोनों को सीमेण्ट से जोड़ दिया गया है। इस सिंहासन में दोनों ओर एक-एक सिंह एवं उनके मध्य में एक धर्मचक्र उत्कीर्ण है। इस सबके ऊपर उलटे तिहरे कमल का मनोरम अंकन है। मूर्ति का शिलाफलक , फुट 6 इंच x 3 फुट 9 इंच है। आसन उष्णीष-नुमा है तथा उस पर उलटा दुहरा कमल आलिखित है। मूर्ति के दोनों घुटने और नाक अंशतः खण्डित हैं, और भी अनेक स्थानों पर छोटे-छोटे गड्ढे पड़ गये हैं। मूर्ति के आसनादि पर कोई चिह्न नहीं है। श्रीवत्स अत्यन्त समतल और सक्ष्म दीख पड़ता है। ग्रीवा में त्रिवलि सूक्ष्म किन्तु स्पष्ट है। ठोढ़ी किंचित् आगे को निकली हुई है, होठ मोटे और सटे हुए हैं, नेत्र उभरे, फैले और लम्बे, कान लम्बे किन्तु कन्धों का स्पर्श न करते हुए तथा केश धुंघराले हैं। सज्जा में केवल भामण्डल ही है जो कम अलंकृत और कम उभरा हुआ है। डॉ. क्लाज ब्रून के शब्दों में- “यहाँ सिर खूब चौड़ा है, स्थूल अधर काफी सटे हुए हैं, तथा अर्ध-निमीलित नेत्र कुछ अधिक बाहर की ओर झुके हुए हैं। उठी हुई भृकुटियाँ दृढ़ता और आन्तरिक एकाग्रता के भाव को पुष्टि प्रदान करती हैं। यहाँ गौण प्रतिमाओं तथा सज्जा-तत्त्वों का प्रायः अभाव है।"3 एक अद्वितीय पद्मासन तीर्थंकर मन्दिर संख्या 15 के मण्डप में स्थित पद्मासन तीर्थंकर की एक मूर्ति गुप्तकाल के तुरन्त बाद की कला का पूर्णतया प्रतिनिधित्व करती है। नासाग्र दृष्टि, सांसारिकता से तीव्र विरक्ति आदि इस मूर्ति की विशेषताएँ हैं। अलंकरण में परम्परा के निर्वाह के साथ एक विशेषता यह है कि उसमें दोनों ओर शार्दूलों का आलेखन 1. वायं से दायें चौथी। 2. दे -चित्र सं. 50। इसका निर्माण काल चौथी शती ई. माना जा सकता है, क्योंकि इसमें गुप्तकालीन ऐहिकता और आध्यात्मिकता का केवल समन्वय ही नहीं है बल्कि अंग-प्रत्यंगों का गठन, भावाभिव्यक्ति की उत्कृष्टता, ध्यानमग्नता आदि भी दर्शनीय हैं। 3. द-'जैनयुग', मई 1959 में प्रकाशित ('मध्यदेश के जैनतीर्थ : देवगढ़') । 1. दे. -चित्र सं. 52 मूर्तिकला :: 129 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy