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उन्मेष हुआ है वहाँ वह कुछ बोझिल-सी बनकर रह गयी और कभी-कभी कलाकार भी इस अतिरिक्त कार्य से ऊबकर परिकर को मुख्य-मूर्ति की अपेक्षा कम सूक्ष्मता के साथ उत्कीर्ण करता है। शिलापट्टों के पृष्ठ भाग पर तो कलाकार की छैनी नहीं ही चली है, किनारे भी अनगढ़ छोड़ दिये गये हैं। इसलिए कभी-कभी तो यह भ्रम होने लगता है कि अमुक शिलापट्ट किसी बड़े शिलापट्ट का खण्ड तो नहीं है।
अलंकरण और परिकर की मर्यादा का निर्वाह करने में कलाकार को बहुत उलझन हुई है। शिलापट्ट के छोटे होने या अलंकरण और परिकर की अधिकता होने से कलाकार अनेक बार नियोग-पूर्ति-सी करता दीख पड़ता है। परिकर की मूर्तियों को वह अपेक्षाकृत लघु-आकार में और स्थूल रूप में गढ़कर ही छोड़ देता है। इसके विपरीत अनेक मूर्तियों में यह भी हुआ है कि अलंकरण और परिकर को अत्यधिक प्रधानता दे दी गयी है जिसमें मुख्य-मूर्ति छिपी हुई-सी दृष्टिगोचर होती है।
भट्टारक-परम्परा का ही प्रभाव था कि तीर्थंकरों की मूर्ति समय के साथ क्रमशः छोटी होती गयी और उनकी शासन-देवियों की मूर्तियाँ बृहदाकार होती गयीं। प्रारम्भ में तीर्थंकरों की मूर्ति के साथ शासन-देवियों की मूर्तियाँ या तो अंकित ही नहीं होती थीं या बहुत छोटे आकार में अंकित होती थीं; जबकि भट्टारकों के प्रचार और प्रभाव की वृद्धि के साथ यह पूर्णतः विपरीत होता गया और स्थिति यहाँ तक आयी कि तीर्थंकर-मूर्ति की अपेक्षा शासन-देवी की मूर्ति बीस गुनी बड़ी तक बनायी जाने लगी। शासन-देवियों की विराटता की यह परम्परा देवगढ़ में अपने सर्वोच्च रूप में देखने को मिलती है। यहाँ उनकी ऊँचाई मानवाकार तक हो गयी है जबकि उनके अधिष्ठाता तीर्थंकर मुकुट का एक अंग या प्रतीक-अंकन मात्र बनकर रह गये हैं।'
च्युतियाँ
कुछ मूर्तियाँ ऐसे कलाकारों द्वारा गढ़ी गयी हैं, जो शास्त्रीय विधानों से या तो अपरिचित थे या असावधान थे। उदाहरण के लिए अम्बिका यक्षी की कुछ मूर्तियों का पेट बहुत बड़ा दिखाया गया है। कलाकार यदि उसे गर्भवती दिखाना चाहता
1. दे.-चित्र सं. 50, 51, 52 आदि। 2. दे.-चित्र सं. 58, 59, 60, 61, 74, 75 आदि। 3. दे.-साहू जैन संग्रहालय में प्रदर्शित चक्रेश्वरी एवं पद्मावती की मूर्तियाँ तथा जैन चहारदीवारी में
जड़ी हुई एवं विभिन्न मन्दिरों में विद्यमान यक्षी-मूर्तियाँ। और दे.-चित्र सं. 99, 100, 106, 103,
109, 104, 107, 108, 110 आदि। 4. दे.-मं. सं. 12 के गर्भगृह में जड़ी हुई अम्बिका-मूर्तियाँ तथा साहू जैन संग्रहालय में प्रदर्शित
चक्रेश्वरी-मूर्तियाँ और भी दे.-चित्र सं. 105, 99, 100, 106, 97 आदि। 5. दे.-जैन चहारदीवारी का बाहरी ओर उत्तर में जड़ी हुई अनेक अम्बिका-मूर्तियाँ तथा चित्र सं.
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मूर्तिकला :: 123
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