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________________ कहना कठिन है। यद्यपि कुछ मूर्तियों पर लेख उत्कीर्ण हैं, परन्तु उनसे प्रस्तुत प्रश्न पर प्रकाश नहीं पड़ता। कुछ मूर्तियों पर केवल नाम उत्कीर्ण हैं, पर वे कलाकारों की अपेक्षा समर्पण-कर्ताओं के प्रतीत होते हैं। यदि वे नाम कलाकारों के भी मान लिए जाएँ, तो भी उनसे कलाकारों के विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती। कलागत विशेषताओं को देखते हुए यह अनुमान अवश्य किया जा सकता है कि देवगढ़ में स्थानीय कलाकारों के साथ बाहरी कलाकार भी काम करते थे। कुछ मूर्तियों पर गान्धार शैली का प्रभाव इस अनुमान को पुष्ट करता है। कुछ मूर्तियों की मुखाकृति चीनी-मुखाकृति से बहुत अधिक मिलती-जुलती है अतः सम्भव है कि किसी चीनी कलाकार ने भी अपना कौशल दिखाया हो। मुगलकाल में निर्मित मूर्तियों के कलाकार निश्चित ही स्थानीय नहीं थे। उनकी छैनी स्थानीय छैनी से स्पष्टतः भिन्न दीखती है। विभिन्न कला-शैलियों का प्रभाव मूर्तियों का निर्माण यहाँ दीर्घकाल तक हुआ। मौर्यकाल की मूर्तियाँ यद्यपि अब यहाँ दृष्टिगत नहीं होतीं या उनके लक्षण यहाँ की मूर्तियों में साधारणतः नहीं पाये जाते, तथापि यह मानना होगा कि उस समय यहाँ मूर्तियों का निर्माण प्रारम्भ हो चुका था। गान्धार कला का प्रभाव तो निश्चित रूप से यहाँ की अनेक मूर्तियों पर देखा जा सकता है। एक विशिष्ट मुखाकृति, जो गान्धार कला की विशेषता है, यहाँ की न केवल तीर्थंकर मूर्तियों बल्कि देव-देवियों और स्त्री-पुरुषों की मूर्तियों में भी पर्याप्त सफलता से अंकित की गयी है। प्रत्युत यह मुखाकृति यहाँ की सर्वाधिक लोकप्रिय विशेषता रही है, जिसका प्रभाव परवर्ती मूर्तियों पर भी विद्यमान रहा है, यहाँ तक कि उसी के कारण चन्देलकालीन मूर्ति-कला यहाँ कम ही पनप सकी। गुप्तकाल की अनेक मूर्तियाँ यहाँ उपलब्ध हैं, जिनका विस्तृत और सप्रमाण विवरण हम अग्रिम पृष्ठों में प्रस्तुत करेंगे। कलचुरि और चन्देल युग में यहाँ प्रचुरता से मूर्तियाँ निर्मित हुईं। मुगलकाल तक यहाँ मूर्तियों के निर्मित होते रहने के प्रमाण मिलते हैं। 1. दे.-चित्र संख्या 50। 2. दे.-चित्र संख्या 73 । 3. यहाँ के एक अभिलेख में अशोककालीन ब्राह्मी का भी प्रयोग हुआ है। दे.-चित्र सं. 49। 4. दे.-चित्र सं. 501 5. दे.-चित्र सं. 51, 52, 53, 54 आदि। मूर्तिकला :: 121 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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