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________________ 4 मूर्तिकला ( तीर्थंकर तथा देव - देवियाँ) मूर्ति-निर्माण-केन्द्र देवगढ़ में मूर्तियों का निर्माण प्रचुरता से हुआ। उनकी संख्या और विविधता से प्रतीत होता है कि यहाँ बहुत बड़ा मूर्ति-निर्माण- केन्द्र था, अन्यथा तीर्थंकरों तथा अन्य देवों-देवियों की सैकड़ों मूर्तियों के एक ही स्थान पर निर्मित होने का कारण दृष्टिगत नहीं होता । मथुरा की भाँति देवगढ़ में निर्मित मूर्तियाँ समीपवर्ती और कदाचित् दूरवर्ती स्थानों को भी भेजी जाती रही होंगी | यहाँ छोटी-बड़ी बहुसंख्यक मूर्तियों की उपलब्धि तथा कुछ अधगढ़ी मूर्तियों का पाया जाना यही सिद्ध करता है कि देवगढ़ मूर्ति निर्माण - केन्द्र भी था । देवगढ़ के निकटवर्ती चाँदपुर, जहाजपुर, दूधई, आमनचार, ललितपुर क्षेत्रपाल, सेरोन, बानपुर आदि स्थानों पर उपलब्ध सहस्रों मूर्तियों और उनके समीप मूर्ति निर्माण सम्बन्धी किसी चिह्न के उपलब्ध न होने से भी उपर्युक्त मान्यता पुष्ट होती है I उपादान 1. प्रास्ताविक मूर्तियाँ निर्माण करने के लिए पाषाण देवगढ़ के पहाड़ से प्राप्त किया जाता था। साधारणतः यहाँ का 'लाल बलुआ' और 'ग्रे नाइट' पाषाण ही मूर्तियों के निर्माण में प्रयुक्त हुआ है। कुछ मूर्तियाँ काले, पीले और भूरे बलुआ पत्थर की भी प्राप्त होती हैं। कलाकार देवगढ़ के कलाकार स्थानीय थे या कहीं अन्यत्र से आये थे, यह निश्चित 120 :: देवगढ़ की जैन कला एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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