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________________ गुर्जर-प्रतिहार काल की कड़ी सिद्ध करती हैं। अनुमानतः यह आठवीं शती में कभी निर्मित हुआ होगा । जिसे अभी हम मण्डप कह आये हैं उसे यदि अर्धमण्डप कहें तो हमें अंगशिखर के नीचे वाले लघु-कक्ष ( 3 फुट 3 इंच चौड़े और 10 फुट 2 इंच लम्बे ) को मण्डप कहने की सुविधा होगी। यह मण्डप सामने के राहापग में एक अलंकृत प्रवेश-द्वार के साथ संयोजित है । इससे सम्पूर्ण मन्दिर में एक ओर भव्यता का संचार हुआ है तो दूसरी ओर गुर्जर-प्रतिहारकालीन वास्तुकला का स्वरूप स्पष्टतर हुआ है। प्रवेश-द्वार पर तीन शाखाएं हैं। गंगा-यमुना और अन्य अलंकरणों से गुप्तकालीन प्रवेश-द्वार का आभास मिलता है। गर्भगृह और उसका प्रवेश-द्वार अलंकृत नहीं है, पर उसमें स्थित मूर्तियाँ प्राचीनता और कलापूर्णता के लिए विशेष रूप से ध्यान देने योग्य हैं । ' गया अंग - शिखर की ऊँचाई ( छत से ) 11 फुट 8 इंच है। उसमें सर्वप्रथम 4 फुट 2 इंच चौड़ी ओर 5 फुट 3 इंच ऊँची स्तम्भयुक्त देवकुलिका है । उसका तोरण टूट है । मुख्य मूर्ति भी गिरकर टूट गयी थी, अतः उसके स्थान पर दूसरी स्थापित कर दी गयी है । उसके दायें पार्श्वनाथ और बायें सुपार्श्वनाथ की पूर्ववर्ती मूर्तियाँ हैं । मुख्य मूर्ति के अष्टप्रातिहार्य वाला भाग मूलरूप में है जिसके मध्य में उड़ान भरते हुए चतुर्भुज उद्घोषक की स्थिति असाधारण है। उसके दोनों ओर तीन-तीन देवकुलिकाएँ हैं जिनमें से मध्यवर्तियों में पद्मासन और पाश्ववर्तियों में कायोत्सर्गासन तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं । इस विशाल देवकुलिका के दोनों ओर दो-दो श्रीवत्स, उनके ऊपर एक-एक श्रीवत्स के साथ कल्पवृक्ष और उनके भी ऊपर (बायीं ओर) धरणेन्द्र - पद्मावती और ( दायीं ओर) तीन तीर्थकर मूर्तियाँ अंकित हैं। I इस सबके ऊपर पत्रावली और उसके भी ऊपर लगभग 5 फुट के त्रिकोण पर तोरणाकार अंकन है जिसमें सशक्त उड़ान भरता हुआ विद्याधर - युगल दर्शनीय वन पड़ा है। मुख्य शिखर, जैसा कि कहा जा चुका है, अधिष्ठान से ही प्रारम्भ हो जाता है और छत के लगभग 6 फुट की ऊंचाई पर से अधिकाधिक पतला होने लगता | 'आमलक' काफी बड़ा है, जिसपर आच्छादन सहित कलश है । उसपर 'आमलिका' और उसपर 'दण्ड' स्थित है । सम्पूर्ण शिखर की ऊँचाई छत से अनुमानतः 25 फुट है । 1. इसमें स्थित एक ऐसी ही मूर्ति के लिए है - चित्र संख्या 62 । 2. पंचम अध्याय की टिप्पणी। 3. तीथकर की गण को इन्दुभि बजाकर बिलाक में गंवा देनेवाला ! Jain Education International For Private & Personal Use Only स्थापत्य : 113 www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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