SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (8) मन्दिर संख्या 5 यह मन्दिर' उपर्युक्त मन्दिर (संख्या 28) का समकालीन प्रतीत होता है, यद्यपि इसका शिखर उसकी अपेक्षा कम ऊँचा और कम विकसित है। प्रवेश-द्वारों पर गंगा-यमुना के अतिरिक्त महामानसी (16वीं विद्यादेवी), गोरी (9वीं विद्यादेवी), महाकाली (8वीं विद्यादेवी)' और अम्बिका के आलेखन से भी यह गुर्जर-प्रतिहारकालीन वास्तु सिद्ध होता है। भीतर समचतुष्कोण (7 फुट 2 इंच) इस मन्दिर में 1 फुट का समचतुष्कोण और 7 फुट 10 इंच ऊँचा एक स्तम्भ स्थित है। कुछ वर्ष पूर्व किये गये जीर्णोद्धार के समय इसकी अस्त-व्यस्त चौकी व्यवस्थित की गयी थी। चोकी । फुट 3 इंच ऊँची है, जिसके चारों ओर सिंहासन के सभी आवश्यक लक्षण, कीर्तिमुख, सिंह और यक्ष-यक्षियाँ आदि अंकित हैं। यह दो पाषाणों से मिलकर बनी है। इसके ऊपर 3 इंच की शिला और उसके भी ऊपर 6 इंच की कमलाकृति शिला स्थित है। उसपर भी 2 इंच की एक अलंकरण-रहित शिला स्थित है, जो जीर्णोद्धार के समय या तो बदल दी गयी है या अतिरिक्त रूप से समाविष्ट कर दी गयी है। इस पर :, फुट 6 इंच ऊँची और 2 फुट 9 इंच का (बीच में) समचतप्कोण पापाण स्थित है, जो ऊपर जाकर 2 फुट 4 इंच का समचतुष्कोण रह जाता है। इस पाषाण के चारों ओर समानान्तर 11 (आड़ी) शाखाओं में तीर्थंकरों की कायोत्सर्गासन और पद्मासन मूर्तियाँ अंकित हैं। उसके शीर्प के प्रत्येक पार्श्व में 5-5 देवकुलिकाएँ हैं जिनमें से प्रत्येक दूसरी और चौथी में कायोत्सर्गासन और शेप में पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियाँ अंकित हैं। देवकुलिकाओं के ऊपर साधारण अलंकरण और उसके ऊपर एक कमलाकृति का आलेखन है। प्रवेश-द्वारों की दृष्टि से यह मन्दिर विशेष महत्त्व रखता है। पूर्व और पश्चिम में तो पंचशाखा-द्वार हैं ही, उत्तर और दक्षिण में भी कलाकार ने पापाण में द्वाराकृतियाँ उत्कीर्ण करने का अद्भुत और सफल प्रयत्न किया है। फलस्वरूप यह 1. दे.-चित्र संख्या 5 से 8 तक। 2. इसके लक्षण के लिए दे.-चतुर्थ अध्याय की टिप्पणी। 3. लक्षण के लिए दे..--चतुर्थ अध्याय की टिप्पणी। 4. इसके लक्षण के लिए दे.-चतुर्थ अध्याय की टिप्पणी। 5. दे.-चित्र संख्या 81 6. दे.-चित्र संख्या 6 और 71 7. उत्तर की द्वार-आकृति चित्र संख्या पाँच में देखी जा सकती है। 114 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy