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जंबूनीवपणतिकी प्रस्तावना प्रतीक रूप राशि ) और एक का अन्तर नगण्य है। दूसरा यह, कि ९ के साथ ८ का उपयोग करने पर कहीं उसका अर्थ (असंख्यात डोक-१) प्रमाण राशि न मान लिया जाय । इस प्रकार ४. (आवलि )
लिखे जानेवाले प्रमाण में आवलि के स्थान पर ८ का उपयोग नहीं हुआ प्रतीत होता है। गोम्मटसार बीवकाण्ड में गाथा २०९ में आवलि न लेकर घनावलि लिया गया है। घनावलि शन्द ठीक मालूम पड़ता है। आवलि यदि २ मानी बावे तब बनावलि की संहष्टि ८ हो सकती है। परन्तु, यह इसलिये सम्भव नहीं है कि २ को सूच्यंगुल का प्रतीक माना गया है।
स्मरण रहे कि उपयुक्त प्रतीक रूप राशियों ( Sets) का उल्लेख, उन राशियों में मुख्य रूप से आकाश में प्रदेशों की उपधारणा के आधार पर समाये चानेवाले प्रदेशों की गणात्मक संख्या बतलाने के लिये किया गया है। आगे वायुकायिक बादर पर्याप्त राशि को ग्रंथकार ने प्रतीक रूप से लिखा गया है। यहाँ
संख्यात == धन लोक को संदष्टि प्रतीत होती है पर ग्रंथकार द्वारा वहाँ केवल लोक शब्द उपयोग में लाया गया है। संख्यात राशि के प्रतीक के लिये तिलोयपण्णति माग २, पृ. ६०२ देखिये । मुविधा के लिये हम आगे चलकर इसे Q द्वारा प्ररूपित करेंगे।
तदुपरान्त, पृथ्वीकायिक बीवों की 'सूक्ष्म पर्याप्त बीव राशि' तथा सूक्ष्म अपर्याप्त बीयराशि के प्रमाण, क्रमशः, प्रतीक रूपेण तथा = निरूपित किये गये हैं। प्रथम राशि को प्राप्त करने के लिये = १.८) प्रमाण को अपने योग्यसंख्यात रूपों से खंडित करके उसका बहुमाग ग्रहण करना पड़ता है। दूसरी राशि उक्त प्रमाण का एक भाग रूप ग्रहण करने पर प्राप्त होती है। इसका कारण यह है कि अपर्याप्तक के काल से पर्याप्तक का काल संख्यात गुणा होता है। स्पष्ट है, कि पृथ्वीकायिक सूक्ष्मराशि का वां भाग पर्याप्त जीव राशि ली गई है तथा भाग अपर्याप्त जीव राशि ली गई है।
___सकायिक जीव राशि का प्रमाण प्रतीक रूपेण, लिया गया है। गोम्मटसार बीवकांड गाथा २११ के अनुसार ४ प्रतरांगुल है, = जगप्रतर है, २ आवलि है, तथा a असंख्यात है। इस प्रकार, आवलि के असंख्यातवें भाग (२) से विभक्त प्रतरांगुल (१) का भाग नगपतर (= ) में देने से प्रमाण राशि स जीव राशि प्राप्त होती है।
इसके पश्चात् ग्रंथकार ने प्रतीक रूप से, सामान्य वनस्पतिकायिक जीव राशि का प्रमाण यह दिया है:
सर्व बीवराशि रिण [...] रिण [=(:)]
अंतिम पद =a(-) समस्त तेजस्कायिक, पृथ्वीकायिक, वायुकायिक तथा जलकायिक राशियों के योग का प्रतीक है। ४ का अर्थ हम छः में से इन चारों कार्यों के जीव ले सकते हैं। शेष - तथा - का निश्चित अर्थ कहने में अभी समर्थ नहीं है।
उपर्युक्त बीव राशि में से असंख्यात लोक प्रमाण राशि घटाने पर साधारण वनस्पतिकायिक जीव राशि उत्पन्न होती है । यथा :
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