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जंबूदीवपण्णत्तिकी प्रस्तावमा उक्त प्रमाण = [P: - १०....]x[D.' - १.०.००, १२५००००००००
यहां n' की गणना धातकीखंड द्वीप से आरम्भ करना चाहिये। यह प्रमाण दूसरी तरह से भी प्राप्त किया जा सकता है। चूंकि यह, Dna परिधि के अन्तर्गत क्षेत्रफल में, बम्बूद्वीप के क्षेत्रफल की राशि जैसी इतनी राशियां सम्मिलित होना दर्शाता है, इसलिये यह प्रमाण
[D]
पर भी होना चाहिये। इसी के आधार पर ग्रंथकार ने उपयुक्त
सूत्र निकाला होगा। गा. ५, २६५- अतिरिक्त प्रमाण ७४४ = -
- Ksn' .
Dn'२००००० गा.५, २६६- इस गाथा में ग्रंथकार ने बादर क्षेत्रफल निकालने के लिये 1 का मान ३ मान लिया है। इस आधार पर, द्वीप-समुद्रों के क्षेत्रफल निकालने के लिये ग्रंथकार ने सूत्र दिया है।
nवै द्वीप या समुद्र का क्षेत्रफल निकालने के लिये Dn विस्तार है तथा आयाम (Dn - १०००००)९ है। इन दोनों का गुणनफल उक्त द्वीप या समुद्र का क्षेत्रफल होगा। यह दूसरी रीति से
[(Pa')-(P)'] होगा और इस प्रकार, * D. (Dn - १०००००) = ३ [(P) -(P)]
मान रखने पर, दोनों पक्ष समान सिद्ध किये जा सकते हैं। यहां 1 को ३ मानकर बादर क्षेत्रफल का कथन किया है।
गा. ५, २६७- उपर्युक्त आधार पर अधस्तन द्वीप या समुद्र के क्षेत्रफल से उपरिम द्वीप अथवा समुद्र के क्षेत्रफल की सातिरेकता का प्रमाण
_____Dnx९००००० है। यहां n को गणना कालोदक समुद्र के उपरिम द्वीप से आरम्भ की गई है। यह, वास्तव में उत्तरोत्तर आयाम को वृद्धि का प्रमाण है ।
गा.५, २६८-- n द्वीप या समुद्र से अधस्तन द्वीप-समुद्रों के पिंडफल को लाने के लिये गाथा को प्रतीक रूपेण इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है :
अधस्तन द्वीप-समुद्रों का सम्मिलित पिंडफल = . [Dn - १०००००] [९(Dr-१०००००)-९०००००] ३ • यह दूसरी रीति से ३(१) आवेगा। यदि उपर्युक्त मान रखे जावे तो ये दोनों समान प्राप्त होंगे। गा. ५, २६९- यहां अतिरेक प्रमाण ३ {[२Dn - २०००००] (३०००००)- ३(०२०) } है।
गा. ५, २७१- अधस्तन सब समुद्रों का क्षेत्रफल निकालने के लिये गाथा दी गई है। चूंकि द्वीप ऊनी संख्या पर पड़ते है इसलिये हम इष्ट उपरिम द्वीप को (२n-१) वां मानते हैं। इस प्रकार, अधस्तन समस्त समुद्रों का क्षेत्रफल:
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