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जंबूदीवपण्णात्तिकी प्रस्तावना
n द्वीप या समुद्र का क्षेत्रफल = [२- D,- D,Jn-1 D,
=(३D,)२ [२० - १ - १]२n-1 होता है। n वलयाकार क्षेत्र का क्षेत्रफल निकालने के लिये सूत्र यह है :बादर क्षेत्रफल - DD[Dna + Dnm+ Dnb]. यहाँ Dnb का मान = [२१२-' +२-२ + २-3+......+२+२}+ १]D, है। ___Dna का मान = [२१२-२ +२"-3+......+२} + १]D, है। Dnm - Dob+ Dna
- २ इनका मान रखने पर, बादर क्षेत्रफल = २"-' D[Dna + ३(Dna + Dnb) +Dnb]
= २०-(D,)-[ ३ { २+२((-१+२ +२((-१२ = ३(२"-') (D,)[१ + २४-1 - २+२(-१+ २-')],
= ३२[२-१](D)[२-१-१] यह सूत्र, २४२वी गाथा में दिये गये सूत्रानुसार फल देता है। गा. ५, २४४- यह सूत्र पिछली गाथा के समान है।
{Log (Apj) + १} वे द्वीप या समुद्र' का क्षेत्रफल, (Api) (Apj-१){९.०० करोड़ योजन वर्ग योजन हागा।
पिछली (२४३) गाया में n वलयाकार क्षेत्र का क्षेत्रफल ३२(D)[२-1] [२-1 - १] बतलाया गया है बो ९(१०००००)२ [२-"] [२-१-१] के बराबर है।
यदि हम n=Log: Apj+ १ लिखें तो,
n-१-Log Apj होगा और इसलिये, २-1=Apj हो बावेगा। इस प्रकार, ग्रंथकार ने यहाँ छेदागणित के उपयोग का निदर्शन किया है। उन्होंने बघन्य परीतासंख्यात को १६ के द्वारा प्ररूपित किया है और १ कम जघन्य परीतासंख्यात को (१६-१) नहीं लिखा है वरन् १५ लिखा है चो उस समय के प्रतीकत्व ज्ञान के संपूर्ण रूप से विकसित न होने का द्योतक है। . इसी प्रकार, {Log. (पल्यापम)+१} द्वीप का क्षेत्रफल . =(पल्योपम) (पल्योपम -१)४९०००००००००० वर्ग योजन होता है।
आगे, स्वयंभरमण समुद्र का क्षेत्रफल निकालने के लिये २४३ या २४४वीं गाथा में दिये गये सत्र बादर क्षेत्रफल=Dn(३२) (Dn-D) का उपयोग किया गया है।
इस समुद्र का विष्कम्भ Dn = +७५००० योजन है, इसलिये, बादर क्षेत्रफल = [ जगश्रेणी + ६७५००० यो. ] (जगणी + ७५००० यो. - १००.०० यो.) = ९.(बगश्रेणी) + जगभेणी (Fax (-२५... यो. ) + ६७५००० यो.)
- (२५००० यो.४६७५००० यो.) = (जगभेणी ) + [११२५०० वर्ग यो.४१ रानु]
-१६८७५०००००० वर्ग योजन होता है। १ ग्रंथकार ने लिखा है, कि यह द्वीप क्रमांक होगा अर्थात् यह संख्या उनी- अयुग्म होगी।
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