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________________ तिकोयपण्णत्तिका गणित ३ गा. ५, २४५-प्रतीक रूपेण, इस गाथा का निरूपण यह होगा:___ मान लो, इच्छित द्वीप या समुद्र nवा है; उसका विस्तार DD है तथा आदि सूची का प्रमाण Dnaहे। तब, शेष वृद्धि का प्रमाण = २Dn - (Dnt Dna) होता है। इसका साधन करने पर २D-Dna प्राप्त होता है। यहाँ Dn = २ -D, है तथा Dna = १+२[२+२+...... + २-२] है । अर्थात् , Dna = [१+ २(२-१-२)]D, यो. है। . २ Dn- Dna -२"Dh+[- १ - २" + ४]D, =D. ___ = १००००० योजन होता है। गा. ५, २४६-४७- 'प्रतीक रूप से:५०... योजन+Dna = Dnb+ [Dn - २०००००] इस सूत्र में भी Dna, Dnb और Dn का आदेशन ( substitution ) करने पर दोनों पक्ष समान आ पाते हैं। गा.५.२४८-प्रतीक रूप से:उक्त वृद्धि का प्रमाण -18(Dnb)- Dna} ___ = १३ लाख योजन है। गा. ५, २५०-प्रतीक रूप से : (EDn - ३००.००)-{१Dn-३००००० वर्णित वृद्धि का प्रमाण = - गा. ५, २५१- प्रतीक रूपेण, वर्णित वृद्धि का प्रमाण = 4Dn-{Dn-८०००००। १२ गा. ५, २५२- चतुर्थ पक्ष की वर्णित वृद्धि को यदि Kn मान लिया जाय तो इच्छित वृद्धिवाले (n) समुद्र से, पहिले के समस्त समुद्रों सम्बन्धी विस्तार का प्रमाण-Kn-२००००० होता है। (३Dn - ३०००००)-(१-३०००००)। यह सूत्र गा.५, २५३- वर्णित वृद्धि२५१ वी गाथा में कथित सूत्र के सरश है। अंतर केवल द्वीप और समुद्र शन्दों में है। १ यहां वर्णित वृद्धियों का व्यावहारिक उपयोग प्रतीत नहीं होता। द्वीप और समुद्रों के विस्तार १,२,४,८,......अर्थात् गुणोत्तर श्रेदि में दिये गये हैं। तथा द्वीपों के विस्तार १,४,१६, ६४..... भी गणोचर भेदि में बिसमें साधारण निष्पत्ति ४ है। उसी प्रकार समुद्रों के विस्तार क्रम ३२,......आदि दिये गये हैं वहाँ साधारण निष्पत्ति ४ है। इन्हीं के विषय में गुणोत्तर श्रेदि के योग निकालने के सूत्रों की सहायता से, भिन्न २ प्रकार की वृद्धियों का वर्णन ग्रंथकार ने किया है। विस्तार क्रमशः २, ८, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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