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________________ तिकोयपण्णसिका गणित (गा. ४, १७८० आदि) मान को प्रमाण न लेकर मेरु पर्वत का आकार आकृति-२८ 'अ', 'ब' से स्पष्ट हो जावेगा २५ PLAN यह आकृति रम्भों तथा शंकु समच्छिन्नकों से बनी हुई है। मूल गाथा में इसे समान गोल शरीरवाला मेरु पर्वत 'समवतणुस्स मेस्स' कहा गया है। सबसे निम्न भाग में चौड़ाई या समतल आधार का व्यास १००९०२.योजन है और यह समान रूप से घटता हआ १०००.० योजन ऊंचाई पर, केवल १००. योबन चौड़ा रह गया है। मेरु पर्वत का समान रूप से ह्रास ऊपर की ओर होता है। प्रवण रेखा लम्ब से 9 कोण बनाती है जिसकी स्पर्श निष्पत्ति, स्प0 = = ४५... - .::. है । यहां आकृति-२९ अ और ब देखिये । b. -- -- १0000 पो. ---- +-१२०००यो +-to -. ..- . -१००० १०..प्राकृति मो. यो. १६ मल भाग में १००० योजन तक समरूप से यह पर्वत हासित होता गया है। व्यास, तल में १.०९०१५योजन है तथा १००० योजन ऊँचाई पर १०००० योजन है। इसलिये, प्रवण रेखा यहां भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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