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विलोयपण्णत्तिका गणित
हो, तो शलाका प्रमाण राशि P में से एक घटा देते हैं। फिर Q को लेकर उसी प्रकार विरलित कर, १,१रूप के प्रति Q. स्थापित करने पर बो R राशि उत्पन्न होती है, तो शलाका प्रमाण स्थापित राशि P में से १ और घटा देते। इस प्रकार यह क्रिया तब तक करते जाते हैं, जब तक कि शलाका राशि P समाप्त नहीं हो जाती । प्रतीक रूप से;
[P] = Q, [aj = R इत्यादि
और जब यह क्रिया P बार की जा चुके तब अंत में उत्पन्न हुई राशि मान लो T है। ऐसा प्रतीत होता है कि वीरसेनाचार्य ने D को Aaj की तीसरी बार वर्गित सम्बर्गित राशि कहा है। हम, इस तीसरी बार वर्गित सम्वन्ति प्रक्रिया के लिये संकेतना का उपयोग करेंगे।
all the points on any straight-line segment. In a plane, for example, there are preoisely as many points on A segment an inoh long as there are in the entire plane. (1) This, of course, is oontrary to common sense; but common sense exists chiefly in order that reason may have its simpliciuses to contradict & onlighten".
और, अमिनवावधि में ही प्रसाधित वह प्रश्न बिसने कैटर को भी स्तब्ध कर दिया था, यह था, "Another problem whiob bafiled Cantor was to prove or disprove that there exists a clase whose cardinal number exceeds that of the olass of natural numbers and is exoveded by that of thoolses of real numbers..." इस प्रकार के अल्पबहत्व (comparability) सम्बन्धी प्रकरण में जैनाचार्यों ने बो परिणाम सत्रों द्वारा उल्लिखित कियेखोज की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
विशद विवेचन के लिये Fraenkel की "Abstraot Set Theory" दृष्टव्य है।
आगे, बैनाचार्यों की अनन्ती की अवधारणा से हारवर्ड के प्रोफेसर रायस की निम्न लिखित कुछ अवधारणाओं से तुलना करिये, बो Enoyolopedia Americana vol. 15 के पृष्ठ १२० आदि से यहां उधृत की गई है:
____ "1) The true infinite, both in magnitude and in organisation, although in one sense endless, & so incapable in that sense of being completely grasped, is in another, and preciso sense, something perfootly determinate.
2) This determinateness is a character which indeed, includes and involves the endlessness of an infinite series, but the more endlenness of an infinite series is not its primary character, but simply a negatively result of the self representative character of the whole system.
3) The endlessness of this series means that by no merely successive process of counting in God or in man, is its wholeness ever exhausted.
4 ) In consequence the whole endless series in so far as it is a reality must be prosent, as a determinato order, but also all at once, to the absolute experience. It is the process of successive counting, as such, that remains, to the end incomplete so as to imply that its own possibilities are not yet realized........."
गणित के इतिहासकारों द्वारा कहा जाता है कि सबसे पूर्व प्राकृत संख्याओं के द्वारा इस संहति से दूसरी नवीन संहति (भिन्नों) की खोज बेबीलोन और मिश्र के निवासियों ने व्युत्क्रम करने की रीति (Method of Inversion) से की थी। प्राथमिक व्युत्क्रम की अन्य रीतियां योग और वियोग:
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