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जंभूदीवपण्णत्तिकी प्रस्तावना
आरम्भ में Aaj की दो प्रतिराधियां स्थापित करते है, इनमें से एक Aajराशि को शलाका प्रमाण स्थापित करते हैं। दूसरी Aaj राशि को विरलित कर उतनी ही राशि पुंष को १, १, रूप में स्थापित कर, परस्पर में गुणन कर b राशि उत्पन्न करते हैं, और Aajशलाका प्रमाण राशि में से १ घटा देते हैं। अब राशि का विरलन कर १, १, रूप को b राशि ही देकर परस्पर गुणन करके राशि उत्पन्न करते हैं और अब Aajशलाका प्रमाण राशि में से १ और घटा देते है। यह क्रिया तब तक करते बाते हैं, जब तक कि शलाका प्रमाण राशि Aaj समाप्त नहीं हो जाती। प्रतीक रूप से;
FAajTAai = b: [b] =0; [0] =d; did=e;
इसी प्रकार करते जाने के पश्चात् बब Aaj बार यह क्रिया हो चुके तब मान को j राशि उत्पन्न होती है।
फिर से, 5 राशि की दो प्रति राशियां करके, एक को शलाका रूप स्थापित कर और दूसरी को विरलित कर, एक, एक भंक के प्रति ही स्थापित कर परस्पर मुणन करने से बोk राशि उत्पन्न हो तो शलाका प्रमाण राशि में से एक घटा देते हैं। फिर इस को लेकर उसी प्रकार विरलित कर, १,१रूप के प्रति k.k. स्थापित करने पर बो राशि उत्पन्न हो तो शलाका प्रमाण स्थापित राशि
में से १ और घटा देते हैं। इस प्रकार यह क्रिया तब तक करते जाते हैं, जब तक किj शलाका राशि समाप्त नहीं हो जाती । प्रतीक रूप से;
=k : [s] =1;[1]= m,... इत्यादि जब तक करते जाते हैं, अब तक कि बार यह क्रिया न हो बावे, और अंत में मान लो Pराशि उत्पन्न होती है।
अब फिर से P राशि की दो प्रतिराशियां करके, एक को शलाकारूप स्थापित कर और दूसरी को विरलित कर, एक, एक अंक के प्रति P ही स्थापित कर परस्पर गुणन करने से बो Q राशि उत्पन्न
boyond this w2+1, and so on, it is said, indefinitely and for ovor. If the first stop-after which all the rest seems to follow of itself-offers any difficulty, we have to grasp the soheme 1, 3, 6,...' 2n+l,......I2, in which, after all the odd natural numbers have been counted off, 2, which is not one of them, is imaginod as the next in order. One purpose of Cantor in constructing these transfinite ordinals. w.w+1......was to provide a means for the counting of well ordered classeg. a class being well-ordered if its members are ordered and eaoh has a unique 'Successor'."
इसके पश्चात् दूसरे अवतरण में इसी पृष्ठ पर उल्लिखित है
“For cardinal numbers also Cantor described 'an Infinito bigger than an Infinite' to confound the Simpliciuses....... He proved ( 1874) that the olass of all algebraic numbers is denumerable, and gave ( 1878 ) a rule for constructing an infinite non-denumerable class of real numbers. Were we to make a list of specta cularly unexpected discoveries in mathmatics, there two might head our list.”
परन्तु, जहां जैनाचार्यों ने वरिमा में स्थित प्रदेश बिन्दुओं की संख्या समतल या सरल रेखा पर, स्थित प्रदेश बिन्दुओं की संख्या से भिन्न मानी है, वहां जार्ज कैंटर ने असद्भासी-सा दिखनेवाला प्रतिपादन किया है जो इसी पुस्तक में पृष्ठ २७७ पर इस प्रकार अंकित है- "Cantor proved ti instance all the points in the whole space can be put in one-one correspondence with
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