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तिलोयपण्णत्तिका गणित
'काल प्रांत किया गया है। यह अचलाम है जो (८४) ३१ x (१०) १० वर्षों के समान है। मूल में दो बीच के नाम नहीं दिये गये हैं जिससे (८४)X (१०) २० वर्ष ही प्राप्त होते हैं। इस प्रकार यह संख्यात काल के वर्षों की गणना द्वारा, उत्कृष्ट संख्यात प्राप्त हो जाने तक ले जाने का संकेत है। अगले पृष्ठ पर उत्कृष्ट संख्यात प्राप्त करने की रीति दी गई है ।
गा. ४, ३१०-१२ यहां यह बात उल्लेखनीय है कि चैनाचार्यों ने प्राकृत संख्याओं एवं राशि (Bet) सिद्धान्त के द्वारा असंख्यात और अनन्त की अवधारणाओं का दर्शन कराने का प्रयत्न किया है । असंख्यात और अनन्त की प्राप्ति प्राकृत संख्याओं पर क्रमबद्ध क्रियाओं द्वारा तथा असंख्यात एवं अनन्त गणात्मक संख्यावाली राशियों की सहायता से की है। यह बात भी सूचित कर दी गई है कि 'संख्यात' चौदह पूर्व के ज्ञाता अंत केवली का विषय है ( देखिये पृ० १८०), 'असंख्यात' अवधिज्ञानी का विषय है ( पृ० १८२), और 'अनन्त' केवली का विषय है ( पृ० १८३ ) अर्थात् इन्हीं निर्दिष्ट व्यक्तियों को इनका दर्शन (perception) हो सकता है। जैसे असंख्यात प्रदेशों युक्त दांगुल की सरल रेखा का दर्शन हमारे लिये सहब है, उसी तरह 'अनन्त रूप में अवस्थित फेवली के लिये अनन्त रूप में दृष्टिगोचर होती होगी। इस पर सभी एक मत न हों, के इतने उच्च भेणियुक्त आदर्श की कल्पना करना भी हानिप्रद नहीं है।
शान की साममियां पर शान के विकास
अनन्त ( infinite ) के कई प्रकार जैनाचार्यों ने स्थापित किये हैं जैसे (१) नामानन्त ( Infinite in Name), स्थापनानन्त ( Attributed Infinite ), (३) द्रम्यानन्त ( Infinity of substances ), (४) गणनानन्त (Infinite in Mathematics ), (५)
१ In history of Western philosophy the term Infinite to aretpoy is mot with, apparently for the first time, in the teaching of Anaximander (6th cent. B. C. ). He used is to describe what be conceived to be the primal matter, principle', or origin of all things."-Encyclopaedia Brittannica, Vol. 12, p. 340, Edn. 1929. "The chief types of infinitude which come to the attention of the mathe. matician and philosopher are cardinal infinitude, ordinal infinitude, the infinity of measurement, the oo of algebra, the infinite regions of geometry and the infinite of metaphysics".-The Encylopedia Americana, vol. 15, p. 120. Edn. 1944.
३ आगे, गणितीय अनन्त धारणा को निम्न लिखित रूप से इस तरह प्रदर्शित किया है, "If the law of variation of a magnitude is such that x becomes and remains greater than any preassigned magnitude however large, then x is said to become; infinite, and this conception of infinity is denoted by oo " इसी के सम्बन्ध में जेम्स पायरपॉट ( James Pierpont) हिलते है, "Historically the first number to be considered were the Positive integers 1, 2, 3, 4, 5, 6... we shall denote this system of numbers by w This system is ordered, infinite......The symbols + are not numbers; io. they do not lie in w. They are introduced to express shortly certain modes of variation which occur constantly in our reasonings." The Theory of Functions of Real Variables, Vol. 1, p. 80.
एक प्रसिद्ध गणितश का अनन्त के सम्बन्ध में विचार इस प्रकार उल्लेखित है "An infinite number, "says Bosanquet, "would be a numb r which is no particular number, for every particular is finite. It follows from this that infinite number is unreal." The Enoyalopedis Americana, Vol. 15, p. 121. पर जैनाचायों द्वारा दी गई अनन्त की आगे के पृष्ठ पर देखिये )
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