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गर कर दक्षिण भारत क्षेत्र म र १९७१ योजन
[(r) -(r-h)]
अबूदीवपणत्तिकी प्रस्तावना पर्वत के अंत तक चाकर, विजयाद्ध भूमि प्रदेश में मुड़ती है। वहां वह पूर्व पश्चिम से आई हुई उन्ममा और निममा से मिलती है। पुनः वह विजयाई को पार कर दक्षिण भरत क्षेत्र में ११९१योषन तक पाकर, पूर्व की ओर मुडकर, मागध तीर्थ के पास समुद्र में प्रवेश करती है। इसी प्रकार सम्मितीय गमन सिंधु नदी का है।
गा. ४, १८०- इस गाथा में ग्रंथकार ने उस दशा में जीवा निकालने के लिये नियम दिया है जब कि बाण और विष्कम्भ दिया गया हो।
बाण (height of the Begment) को यहां के द्वारा, विस्तार (diameter ) को d द्वारा प्ररूपित कर बीवा ( chord ) का मान निम्न लिखित सूत्र रूप में दिया जा सकता है।
जीवा = [()-(-1)
- यहां भी पायथेगोरस के नाम से प्रसिद्ध साध्यका उपयोग है।
यहां आकृति-२६ से स्पष्ट है कि
(उफ)२ = (उप) + (पफ)२ ... (पफ)२ (उफ)-(उप)२
.:. २ पफ %DV [(उफ)२ - (३५)] गा.४, १८१- इस गाथा में प्रथकार ने उस दशा में धनुष का प्रमाण निकालने के लिये स्त्र दिया है बब कि बाण और विष्कम्भ का प्रमाण दिया गया हो।
धनुष ( Length of the aro bounding • मारुति च
the segment ) का प्रमाण निम्न लिखित रूप में
दिया जा सकता है:१ वृत्त की बीवा प्राप्त करने के लिये, बेबीलोनिया निवासी भी प्रायः इसी रूप के सूत्र का उपयोग करते थे जिसके विषय में कूलिज का अभिमत यह है,
"The Pythagorean theorem appears even more clearly in Neugebaper and Btravo's translation of another of the cuneiform texts, which we may date somewhere around 2600 B. 0."- Coolidge, A History of Geometrical Mothodo, p. 7, Edn. 1940. सूत्र प्रतीकरूपेण यह है :
बीवा =V{di -(d-२)२} जम्बूद्वीपप्रशप्ति में, जीवा =V ४. वाण (विष्कम्भ-बाण ) रूप में दिया गया है। २।२३, ९ श्रादि । इसी प्रकार धनुष =V६ (बाण ) + (बीवा )२ प्ररूपित है । २।२४, २९; ६।१०.
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