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________________ तिकोषपण्णसिका गणित - - १.१७* (चतुर्थश परिधि की बीवा)२४१%=(चतुर्थाश परिधि)२ अथवा, यदि बीवा का ऊपर दिया गया मान लेकर साधन करें तो (चतुर्थोश परिधि) - [२x६]४५-५० = १० अथवा, चतुर्थीच परिधि =V... आबकल, इस (Quadrant are of a circle ).को लिखा जाता है जहां 7 का म ३.१४१५९.."है। (गा. ४, ९४-२६९) . भरत क्षेत्र : (आकृति-२७ अ देखिये।) यहां विस्तार कर ५२६६ योजन है। चित्र में सदाफ विजयाई पर्वत है। गध%२३८१योबन है। दक्षिण विजयाद की बीवाफ - ९७४८१३ योजन है, तथा विजयाद की बोवा सद% १०७२०१७ योधन तथा धनुष स ह प फ द = १०७४३१२ योबन है । चूलिका = (सद-१५) = ४८५३१ योजन है। क्षेत्र और पर्वत की पाश्वभुना = स हद फ= ४८८३१ योजन है। भरत क्षेत्र के उत्तर भाग की बीवा का प्रमाण = अब= १४४७१६ योजन है तथा पशुटर अध% १४५२८१२ योबन है। चूलिका- ६- १८७५१४ योजन है। इत्यादि । साथ ही पार्श्वभुजा अ सब द= १८९२११ योजन है। और यहां चित्र मान प्रमाण पर - नहीं बनाये जा सकते हैं क्योंकि १००००० योजन विस्तार की तुलना में ५२६६६ योजन के प्ररूपण से चित्र स्पष्ट न हो सकेगा। यहां (अकृति-२७ ब) अवधा बघश भरत क्षेत्र है और उससे दुगुने विस्तार ‘क ख' वाला च छ झन आकृति हिमवान् पर्वत है। स सरोवर ५०० योजन पूर्व पश्चिम में तथा १००० योजन उत्तर दक्षिण में विस्तृत है । गंगा, प्रथम, पूर्व की ओर ५०० योजन बहती है और तब दक्षिण की ओर मुड़कर सीधी ५२३३३३३३ योजन हिमवान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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