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जंबूदीवपण्णत्तिकी प्रस्तावना
व्यास आकाश का प्रमाण अनन्तान्त प्रदेश कदापि नहीं हो सकता। इस प्रकार, इस सीमा तक किया गया यह प्ररूपण लाभप्रद न हो, पर उनके द्वारा खोजे गये पथ का प्रदर्शन करता है। इसके पूर्व अनन्तानन्त आकाश का निरूपण ग्रंथकार ने ख ख ख द्वारा किया था। यहां परमाणुओं की अनन्तानन्त संख्या बतलाने के लिये २३२१३ द्वारा निरूपण किया गया है और इसे "खखपदस्ससस्स पुर्ट" का
१०५४०९ गुणकार बतलाया है ताकि परिभाषानुसार अंतिम महत्ता प्रदर्शित की जा सके। यह कहा जा सकता है कि ख' अनंत का प्रतीक था और उसमें गुणनमाग की कल्पना उसी तरह सम्भव थी जैसी कि परिमित संख्याओं (finite quantities ) में मानी जाती है।
गा. ४, ५९.६४- इसी प्रकार, क्षेत्रफल की अंत्य महत्ता को प्रदर्शित करने के लिये, १८४५५ उवसन्नासन्न में परमाणुओं की संख्या ग्रंथकार ने ४८४५५ ख ख द्वारा निरूपित की है। ऐसा प्रतीत
१०५४०९ होता है मानों पूर्व पश्चिम, उत्तर दक्षिण, अर्घ अधः, इन तीन दिशाओं में अंत न होनेवाली श्रेणियों द्वारा संरचिंत अनन्त आकाश की कल्पना से ख ख ख की स्थापना की गई हो। .... गा. ४,७०- यहां आकृति-२५ देखिये ।
यदि विष्कम्म (व्यास) को d माने, परिधि को 0 मानें और मिज्या को - मानें तो (द्वीप की चतुर्थीथ परिधि
रूप धनुष की बीवा )२ = (१) ४२ 1000002
kar 2991, ( chord of a quadrant aro 12 1 = (१) ४२ = २x२
___पाययेगोरस के साध्यानुसार भी इसे प्राप्त किया
जा सकता है क्योंकि (म क) + (म क) = (क ख) प्राकृति- -- होता है । ग्रंथकार ने फिर इस चतुर्थाश परिधि तथा उसकी बीवा में सम्बन्ध बतलाया है। यथाः
१ सम्भवतः 'ख ख ख. अनंतानंत आकाश के प्रतीक के लिये ख शब्द से लिया गया है जहां ख का अर्थ आकाश होता है। या आधुनिक अनंत का प्रतीक मौर्यकालीन ब्राझी लिपि के अनुसार ख से लिया गया प्रतीत होता है।
२ वास्तव में आयाम सम्बन्धी एक दिश निरूपण के लिये 'ख' पद लेना आवश्यक है, तथा क्षेत्र सम्बन्धी द्विदिश निरूपण के लिये 'ख ख पद लेना आवश्यक है। इसी प्रकार का प्ररूपण कोस, वर्गकोस आदि में होना आवश्यक था, जिसे ग्रंथकार ने संक्षिप्त निरूपण के कारण न किया हो। उवसन्नासन्न के अंतिम परिणाम को लेकर, हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि उन्होंने १० का वगेमूल दशमलव के किस अंक तक निकाला था, पर अति क्लिष्ट होने से, तथा 2 का सूक्ष्म निरूपण न होने से इस दिशा में अब प्रयत्न करना लाभप्रद नहीं। जम्बूद्वीपप्रशप्ति, १२३, में आनुपूर्वी के अनुसार (११८; १।१८), TT का प्रमाण केवल हाथ प्रमाण तक दिया गया है, मो कुछ भिन्न है।
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