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________________ तिकोपपण्णचिका गणित गा. ४, ६ - नाली के बहुमध्य भाग में चित्रा पृथ्वी के ऊपर ४५००००० योजन विस्तार फेल... ( diameter ) बाळा अतिगोल मनुष्यलोक है ( आकृति -२४) । अतिगोल का अर्थ बेलनाकार हो सकता है, क्योंकि अगली गाथा में उसका बाद्दल्य १ लाल योजन दिया है। (A right circular cylinder of which base is of rad, 2250000 and height is 100000 yojans ) । = = व्यास को ते, त्रिज्या d, गा. ४, ९ – व्यास से परिधि निकालने के लिये म का मान V १० लिया गया है और सूत्र दिया है परिधि (व्यास) २ x १० अथवा ciroum. /(dism), 10. यहां को और परिधि को ० माना बाय तो c=/१०. d=२ /१० वृत का क्षेत्रफल निकालने के लिये खून दिया परिधि x अर्थात् क्षेत्रफल गया है: परिधि (व्यास) र व्यास Y १०. (त्रिया). अथवा, area = इसी प्रकार, लम्ब वर्तुल रम्म का यह है : - 20 घनफल ( volume ) को मूल में 'विदफ' लिखा गया है। Jain Education International = आधार का क्षेत्रफल X ( उत्सेध या बाहल्य ) 89 व्यास ૪ (radius) २. घनफल निकालने का सूत्र परिधि जैसी बड़ी संख्या १४२३०२४९ को अंकों में लिखने के साथ ही साथ शब्दों में इस तरह लिखा गया है परिधि क्रमशः नौ, चार, दो, शून्य, तीन, दो, चार और एक, इन अंकों के प्रमाण हैपद्धति का उपयोग है। यह दसा For Private & Personal Use Only = गा. ४, ५५-५६— सम्भवतः, यहां ग्रंथकार का आशय निम्न लिखित है: बम्बूदीप का विष्कम्भ १००००० योजन है। उसकी परिधि निकालने के लिये x का मान V१० लिया गया है । १० का वर्गमूल दशमलव के ५ अंक तक निकालने के पश्चात् छठवें अंक से ३. कोश की प्राप्ति सम्भव नहीं है, क्योंकि छठवां अंक ७ होने से योजन को कोश में परिवर्तित करने पर २८ की ही प्राप्ति होगी और भी आगे गणना करने पर प्रतीत होता है कि १० के वर्गमूल को आगे के कई अंकों तक निकालने के पश्चात् क्रमशः धनुष, किस्कू, हाय, आदि में परिधि की गणना की S २३२१३ २०५४०६ प्रमाण उवसन्नासन्न बच २३२१३ १०५४०९ गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि ३ उवसन्नासन्न प्रमाण के पश्चात् रहता है । उवसन्नासन्न नामक स्कंध में अनन्तानन्त परमाणुओं की कल्पना के आधार पर, अंथकार ने उक्त भित्रीय प्रमाण में परमाणु की संख्या को, दृष्टिवाद अंग से. ख ख द्वारा निरूपित करना चाहा है। परन्तु दूरी का प्रमाण निकालने के लिये उपसन्नासन के पश्चात् अथवा पहिले ही, प्रदेश द्वारा निरूपण होना आवश्यक है। सूच्यंगुल में प्रदेशों की संख्या के प्रमाण के आधार पर १ उवसन्नासन द्वारा व्याप्त आकाश में अनन्तानन्त संख्या प्रमाण परमाणु भले ही एकावगाही होकर संरचकरूप स्थित हों, पर उतने ति. ग. ७ www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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