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जंबूदोषपण्णत्तिकी प्रस्तावना
असुरकुमार की सात अनीके होती है। नागकुमार की प्रथम अनीक में ९ भेद होते हैं, शेष द्वितीयादि अनीके असुरकुमार की अनीकों के समान होती हैं।
यदि चमरेन्द्र की महिषानीक (भैसों की सेना) की गणना की जाय तो कुल धन एक गुणोत्तर श्रेटि (geometrioal progression ) का योग होगा।
यहां गच्छ ( number of terms) का प्रमाण ७ है, मुख ( first term ) का प्रमाण ४००० है,
और गुणकार ( common ratio) का प्रमाण २ है।
संकलित धन को प्राप्त करने के लिये सत्र का उपयोग किया गया है। यदि S, को n पदों का योग माना जाय जब कि प्रथमपद और गुणकार (Common Ratio): होतब,
{(r.r.rrrrr......upto n terms)- १}+ (r-१)xa=S. अथवा, s,= (-१) इस प्रकार ७ अनीकों के लिये संकलित धन ७ (SI) आ पाता है। वैरोचन आदि के अनीकों का संकलित धन इसी सूत्र द्वारा प्राप्त कर सकते हैं।
गा. ३, १११- चमरेन्द्र और वैरोचन इन दो इन्द्रों के नियम से १००० वर्षों के बीतने पर आहार होता है।
गा. ३, ११४-इनके पन्द्रह दिनों में उच्छ्वास होता है। गा. ३, १४४- इनकी आयु का प्रमाण १ सागरोपम होता है।
इसी प्रकार भूतानन्द इन्द्र का १२३ दिनों में आहार, १२३ मुहूर्त में उच्छास होता है। भूतानन्द की आयु ३ पल्योपम, वेणु एवं वेणुधारी की २३ पल्योपम, पूर्ण एवं वशिष्ठ की भायु का प्रमाण २ पल्योपम है । शेष १२ इन्द्रों में से प्रत्येक की आयु १३ पल्योपम है।
१ गुणोत्तर श्रेदि के संकलन के लिये जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में भी नियम दिये गये है। २९, ४।२०४, २०५, २२२ आदि ।
२ इसके सम्बन्ध में Cosmolgy old & New में दिये गये Prologue का footnote यहाँ पर उद्धृत करना आवश्यक प्रतीत होता है।
___ "Judge, J. L. Jaini, in the "Jaina Hostel Magazine" Vol. VII, Number 3, page 10, bas observed that there is a fixed proportion between the respiration, feeling of hunger and the age of the celestial beings. The food interval is 1,000 years and the respiration ode fortnight for every Sagar of age. The proportion of food interval to respiration is thus, 1 to 24000. Be bas further observed that if & man lived like a god, we shuuld have a legitia ate feeling of hunger only once in the day. A Normal person has 18 respirations to the minute, or 18 x 60 x 24=26920 in 24 huurs, roughly 24,000".-G. R.JAIN, "Cosmology old and New", P.XIII, Edn. 1942.
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