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अंदीवपणतिकी प्रस्थापना
s" _ [n.d] + [२n.s] -nd_nd + २na-nd_
a-nd-(n - १)d + २a]
n . जहां n गच्छ, d प्रचय और 8 आदि हैं।
गा.२,८१-द्रको रहित बिलों (श्रेणिबद्ध बिलों) की समस्त पृथ्वियों में कुल संख्या निकालने के लिये ग्रंथकार सूत्र देते हैं। यहां भादि ५ नहीं होकर ४ है, क्योंकि महातमःप्रभा में केवल एक इन्द्रक और चार श्रेणिबद्ध बिल हैं । यही आदि अथवा A है; ४९, N है और प्रचय ८, D है। इसके लिये प्रतीक रूप से सूत्र यह है:
s' = (- ४)D+ (w•a) + (SN)
-FA+ (x - १)p+a]
- [RA + (- १)p] गा. २, ८२-८३- आदि [ first term A) निकालने के लिये ग्रंथकार सूत्र देते हैं :. [s"+8]+[D.७]-[७- १+x] D
A
=
=
जिसका साधन करने पर पूर्ववत् साधारण सूत्र प्राप्त होता है। यहां इच्छित पृथ्वी ७वीं है जिसका आदि निकालना इष्ट था। इच्छा कोई भी राशि हो सकती है। गा. २, ८४-चय [ common difference D] निकालने के लिये ग्रंथकार सूत्र देते हैं,
D= S" + ((x - १])-(478) इसे साधित करने पर पूर्ववत् साधारण सूत्र प्राप्त होता है।
गा. २, ८५- इसके पश्चात् ग्रंथकार रक्षप्रभा प्रथम पृथ्वी के संकलित धन (श्रेणिबद्ध मिलों की कुल संख्या) को लेकर पद १३ को निकालने के लिये निम्न लिखित सूत्र का प्रयोग करते हैं; वहाँ n= १३, S" = ४४२०, d८ और - २९२ आदि है।
--१ (१) (-)-(-)
इसे साधित करने पर पूर्ववत् समीकार प्राप्त होता है। गा. २, ८६- उपयुक्त के लिये दूसरा सूत्र भी निम्न लिखित रूप में दिया गया है।
1-( २d.s") + (-१)-(-१)}d
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