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तिलोय पण्णत्तिका गणित
संकलित धन निकालने के लिये ग्रंथकार दूसरे सूत्र का कथन करते हैं। उसे उपर्युक्त प्रतीकों
से निरूपित करने पर, इस प्रकार लिखा जा सकता है :
s= [{('=')' +('=')}d+4]n
यह समीकार ऊपर दी गई सब श्रेढियों के लिये साधारण है । उपर्युक्त संख्या “५" महातमःप्रभा के बिलों से सम्बन्धित होना चाहिये ।
इन्द्रक बिलों की कुल संख्या ४९ है, इसलिये यदि अंतिम पद ५ को 1 माना जाय, & को ३८९; और d (प्रचय) ८ हो तो 1 = a – (४९ - १) d
अर्थात् ५ = ३८९ - ३८४
=५
इस प्रकार जो यहां ५ लिया गया है, वह सब श्रेटियों के अंत में जो श्रेटि है, उसका अंतिम पद है।
गा. २, ६९ --- सम्पूर्ण पृथ्वियों के इन्द्रक सहित श्रेणिबद्ध बिलों के प्रमाण को निकालने के लिये आदि पांच first term A ) चय आठ ( common defference D ) और गच्छ का प्रमाण उनंचास ( number of torms N ) है।
मा. २, ७० - यहां सात पृथ्वियां हैं जिनमें श्रेटियों की संख्या ७ है। अंतिम श्रेटि में एक ही पद ५ है । इन सब का संकलित घन प्राप्त करने के लिये ग्रंथकार ने यह सूत्र दिया है।
s' = {(N + ७)D – (3 + १)D + २A]
N
=
= 5 [RA + (N - १)D], यहां ७ इष्ट है ।
गा. २, ७१ - ग्रंथकार ने दूसरा सूत्र इस प्रकार दिया है ।
S' =
' = [NR' ×D+^]N
२
N
=[RA+ (N - १)D]
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४३
=
यहां N = ४९, A = ५, D = ८ है ।
(
गा. २, ७४ - इन्द्रक रहितं बिलों ( श्रेणीबद्ध बिलों ) की संख्या निकालने के लिये इन्द्रकों को अलग कर देने पर पृथ्वियों में श्रेणीबद्ध बिलों की श्रेटियों के आदि prathvi beginning from the Ratnaprabha) ( number of terms ) प्रत्येक के लिये क्रमशः १३, ११,
यहां भी साधारण सूत्र दिया गया है, जो सब पृथ्वियों के की संख्या) निकालने के लिये निम्न लिखित रूप में प्रतीकों द्वारा
first term in the respective क्रमशः २९२, २०४ इत्यादि हैं । गच्छ इत्यादि हैं और चय ८ है ।
अलग अलग धन को ( श्रेणिबद्ध बिलों दर्शाया जा सकता है ।
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