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________________ तिकोषपणत्तिका गणित ३९ /१६+१२योजन २ पद के घनफल के लिये उत्सेध ६ राज, मुख १ राजु, भूमि राजु तथा बाहल्य क्रमशः १६, १२ योबन है, इसलिये इसका तथा ऐसी ही पीछे की आकृति का कुल घनफल = २४(६ राजु)-(११ राज) (१६१ १२ योजन) = वर्ग राजु x १४ योजन = ४९ वर्ग राजु ४४४ योजन होता है। इसे अन्यकार ने = ३१ लिखा है ।.........(५) इसी प्रकार, ब ध तथा त क और उनके समान दक्षिण में स्थित क्षेत्रों के घनफल के लिये कुल उत्सेध ७ राजु है; हानि-वृद्धि १, ५, ६ राजु है तथा बाहत्य में भी हानि-वृद्धि १२, १६, १२ है। ऐसे संक्षेत्र समछिन्नकों का कुल घनफल=२४७ राजुx राजु = ४२ वर्ग राजु ४१४ योजन =४९ वर्ग राजु योजन होता है । इसे ग्रंथाकार ने = १८८ लिखा है । ......(६) अब लोक के ऊपर के घनफल को निकालते हैं (आकृति २० 'व' )। न यहां उत्सेध २ कोस + १ कोस + १५७५ धनुषयोजन है। ___ आयाम १ राजु, चौड़ाई ७ राजु है ... इस आयतब (Cuboid) का घनफल शा. २o a = १ राजु ४७ राजुx ३०३. योजन = ४९ वर्ग राजु x ३०३. योजन होता है। इसे ग्रन्थकार ने = ३०३. लिखा है ।............(७) ७५७५ ८०.. १०१ शेष मागों के विषय में अन्थकार ने नहीं लिखा है। शायद वह घनफल इनकी तुलना में उपेक्षणीय गिना गया हो अथवा उनकी गणना ही न की गई हो। यह बात स्पष्ट नहीं है। जहां तक उस उपेक्षित धनफल का सम्बन्ध है, वह भी सरलता से निकाला जा सकता है। उपर्युक्त ७ क्षेत्रों का कुल घनफल = ४९ वर्गराजु १०२४१९८३४८७ योजन प्राप्त होता है। ......III Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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