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Ka
इसे ग्रंथकार ने
जंबूदीवपण्णसिकी प्रस्तावना
= ४९ वर्ग राजु x
इसे ग्रंथकार ने
५५२०००० लिखा है।
३४३
I में (३) जोड़नेपर ४९ वर्ग राजु X
अर्थात् ४९ वर्ग राजु x
ज
३१९८०००० ३४३
७रा.
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५५२०००० योजन होता है ।
३४३
· (३)
४९४५४००००, ५५२०००० ३४३
३४३
योजन प्राप्त होता है ।
ENT.
३१९८०००० २४३
लिखा है । II
+
१६+१२ २
कृति:- २०
सम
पूर्व में आकृतियां प फ ब भ और त थ हैं; तथा ऐसी ही पश्चिम में आकृतियां हैं जो संक्षेत्रों के (frustrum of triangular prisms ) है । हानि वृद्धि क्रमश: १६, १२, १६, १२ योजन है, तथा आयाम ७
की कुल धनफल = २४७ राजु × १३ राजु ४ |
योजन)
३४३
२५७ राजु X १३ राजु १४४
(
. बोलन) = ४९ वर्गराजु Xx
योजन
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लोक के अन्त से १ राजु
ऊपर तक ६०००० योजन बाहस्यवाले वातवलय क्षेत्रों की गणना के पश्चात् उनसे ऊपर स्थित क्षेत्रों की गणना करते हैं। यहां ( आकृति २० 'अ' ) वात बढ्यों का बाहस्य पूर्व पश्चिम तथा उत्तर दक्षिण में क्रमश:
१६ योजन, १२ योजन, १६ योजन और लोकशिखर पर १२ योबन चित्र में बतलाये अनुसार हैं ।
इनका कुल योजन है ।
>
उत्सेध १३ योजन है, इसलिये इन आकृतियों
१७८३६ ३४३
-योजन होता है ।
३४३
इस प्रकार की गणना, राजु और योजन में सम्बन्ध अव्यक्त होने से बिलकुल ठीक तथा प्रशंसनीय है ।
|इसे प्रथकार ने =
१७८३६ ૨૪૨
लिखा है ।.........(४)
अब, उत्तर दक्षिण अर्थात् सामने के भागों में स्थित पद, वध, और त क तथा ऐसे ही पीछे के क्षेत्रों का घनफल निकालते हैं। ये भी त्रिभुजीय क्षेत्रों के समच्छिनक हैं ।
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