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तिलोयपग्णत्तिका गणित
जब ऊँचाई राजु ली जाती है तो उस ऊँचाई पर व्यास उपर्युक्त नियम के अनुसार ६-[ ] x=0 राजु प्राप्त होता है। इसी प्रकार जब ऊँचाई ! या २ राजु ली जाती है तो विस्तार ६ - {(21)४२} अर्थात् ३७ या राजु प्राप्त होता है। इस प्रकार, इसी विधि से उन भिन्न भिन्न ऊँचाहओं पर विस्तार क्रमशः १११, १४, ११ प्राप्त होते हैं । अन्तिम माप, ४ अर्थात् १ राजु, मंदराकार क्षेत्र का मुख है और भूमि -१६ या ६ राजु है। इस प्रकार प्राप्त विभिन्न क्षेत्रों के घनफल निम्न लिखित रीति से प्राप्त करते हैं।
प्रथम क्षेत्र का घनफल = = [१२६ + ११६]xx७= ४८४ धनराजु ।
द्वितीय क्षेत्र का घनफल
AA
धनराजु ।
द्वितीय क्षेत्र का घनफल = [१६+४]xzxv=२२० धनराजु । तृतीय क्षेत्र का घनफल = [३३१+१४]xxx८४३ धनराजु । चतुर्थ क्षेत्र का घनफल = [+]xx७ = १९९३२ धनराजु । पंचम क्षेत्र का घनफल = [w+PM]xx = धनराजु । षष्ठम क्षेत्र का घनफल == [R+]x¥x७= ६५०४ धनराजु ।
इन सबका योग ३४३ धनराजु प्राप्त होता है । यह प्रमाण सामान्य लोक के घनफल के तुल्य है।
तृतीय और पंचम क्षेत्र के घनफलों को प्राप्त करने की विधि मूल गाथा से नहीं मिलती है । इसका स्पष्टीकरण करते हैं (आकृति-१६ 'अ', 'ब' देखिये)
प्राकृति- १५
आकृति १५ मानिस तृतीय क्षेत्र और पंचम क्षेत्र में से अंतर्वर्ती करणाकार क्षेत्रों को अलग कर, एक जगह स्थापित करने से, निम्न लिखित आकृति प्राप्त होती है, जिसका घनफल +xx३४७ = घनराजु प्राप्त होता है । आकृति-१६ 'स' देखिये।
___ इस प्रकार ग्रंथकार ने तृतीय और पंचम क्षेत्रों में से चार ऐसे त्रिभुजों को ( जिनकी : १ योजन लम्बाई और ३ योजन ऊँचाई हैं ) निकाल कर, अलग से, मंदराकार क्षेत्र में सबसे ऊपर स्थापित किया है। तृतीय क्षेत्र में से जब २४(80x1)xx७ अर्थात् घन राजु घटाते हैं तो
ति. ग.५
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