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________________ जंबूदीवपण्णत्तिकी प्रस्तावना (५) यवमध्य क्षेत्र - ( पू. ३१ पर आकृति - १३ देखिये ) । यह आकृति, क्षेत्र के उदग्र समतल द्वारा प्राप्तछेद ( Vertical section ) है। इसका आगे-पीछे ( उत्तर-दक्षिण) विस्तार ७ राजु यहाँ चित्रित नहीं है । १२ = वर्ग राजु, यहाँ, यवमध्य का क्षेत्रफल ( १ + २ ) x इसलिये, ३५ यवमध्य का क्षेत्रफल = ५ X = ४९ वर्ग राजु; इस प्रकार, ३५ यवमध्य का घनफल = ४९४७ घन राजु = ३४३ घन राजु; और, एक यवमध्य का घनफल = = १९ घन राजु । इस गाथा के उपरान्त दिया गया निदर्शन | == | इस चित्र से ही स्पष्ट है । = ३५ यवमध्य का घनफल है तथा विभक्त कर ३५ यवमध्यों को प्राप्त करना है। (गा. १, २२० ) मन्दराकार क्षेत्र - ( आकृति - १४ देखिये ) । इस क्षेत्र की भूमि ६ राजु, मुख १ राजु, स्केल:- १.१.१.[१०० ऊँचाई १४ राजु, और मुटाई ७ राजु ली गई है। पुनः, समानुपात के सिद्धान्तों के द्वारा क्रमश: भूमि से +3+2, +3+2, 3+3+2+ है', ¥ + 3 + ई + *' + * और अंत में डे +3+2+ * ++ राजुओं की ऊँचाईयों पर मुखों के विस्तार निकाले हैं। ये ऊँचाइयों साधित करने पर, क्रमशःर्डे, २, ३, ५३ है और अर्थात् १४ राजु प्राप्त होती हैं । [ यहाँ २२१ से २२४ वीं गाथाओं का स्पष्टीकरण बाद में करेंगे । ] ऐसे मन्दाकार क्षेत्र का घनफल = १४X७ = ३४३ घन राजु है । दूसरी रीति से, इस क्षेत्र को ऊपर दी गई ऊँचाइओं पर विभक्त करने से ६ क्षेत्र प्राप्त होते हैं । (4) एक == का अर्थ यह है कि १४ राजु ऊँचाई को पाँच बराबर भागों में Jain Education International आकृति - ९४ For Private & Personal Use Only X www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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