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जद्धीवपतिकी प्रस्तावना
अर्थात् १ घन राजु बच रहता है। यही प्रमाण मूलगाथा में दिया गया है। इसी प्रकार पंचम क्षेत्र में से २५xxx७ अर्थात् धन राजु घटाते है तो मुलगाथानुसार ४-५ अर्थात्
"घन गजु प्राप्त होते हैं। अंतिम उपरिम भाग में स्थित क्षेत्र का घनफल रहता है। इस प्रकार, कुल घनफल ३४३ धन राजु प्राप्त किया गया है।
(गा. १, २२०-२३१)
यहां आकृति-१५ मन्दराकार क्षेत्र का उदन छेद ( vertical seotion) है। त्रिभुज क्षेत्र A. B.O. D. से यह चूलिका बनी है, प्रत्येक त्रिभुज क्षेत्र का आधार र राजु तथा ऊँचाई।
चूलिका 4 राजु
घोराजु इन चार त्रिभुज क्षेत्रों में से तीन क्षेत्रों के आधार से चूलिका का आधार (11x३=21) बना है और एक त्रिभुज क्षेत्र के आधार से चूलिका की चोटी की चौड़ाई राजु बनी है।
१ मूल में दिये हुए प्रतीकों ( २२० वी गाथा ) का स्पष्टीकरण इस तरह से हो सकता है। १२ का अर्थ १४७ ऊँचाई और .४७ आधार है। समलम्ब चतुर्भुज के चित्र का
(शेष पृ. ३५ पर देखिये)
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