SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जंबूदीवपण्णप्तिकी प्रस्तावना प्रतीक रूप में राजू को (७) लिखा जाता है। (गा. १,१४९-५१) 'वर्ग आधार पर स्थित त्रिलोक के चित्र के लिये आकृति-रादेखियेस्केल:- सें. मी. . रा. यहां, अर्व लोक, लारवयो. ..... 800000 मी. मध्यलोक (काले. रंगवारा प्रदशित) १००००० यो.४१रा.xरा., एवं अधोलोक स्पष्ट है। आझंति-२ वाहल्य ७ रा. अर्थात् ७ राजु है। ऊँचाई १४ राजु है। अवलोक की ऊँचाई ७ रिण बो. १००००० लिखा है। अर्थात् ग्रंथकार के समय में ऋण के लिये कोई प्रतीक नहीं रहा होगा, ऐसा प्रतीत होता है। ऋण और धन के लिये क्रमशः आड़ी रेखा (-) और (+) प्रतीकों के आविष्कार का श्रेय बर्मनी के जे.विडमेन (१४८९) को है। ग्रंथकार ने दूसरी जगह रिण के लिये रि. का उपयोग भी किया है। धवलाकार वीरसेन ने मिश्र शब्द के लिये + प्रतीक दिया है। (गा. १, १६५) अधोलोक का घनफल निकालने के लिये लम्ब संक्षेत्र ( Right Prism ) का पनफल निकालने का सूत्र दिया है, जिसका आधार समलम्ब चतुर्मुत्र है। वह सूत्र है-(भाषार का क्षेत्रफलx संक्षेत्र की ऊँचाई ) संक्षेत्र का घनफल | आधार का क्षेत्रफल निकालने का सूत्र दिया गया है। [मुख भूमि (इन दो समांतर रेखाओं की लम्ब दूरी)] १मित देश के गिजे में बने हुए महास्तप (Great Pyramid से या लोकाका का आकार किंचित् समानता रखता हुआ प्रतीत होता है। विशेष सहसम्बन्ध के विवरण के लिये सन्मति सन्देश, वर्ष १, अंक १३ आदि देखिये। २ षटर्खागम पुस्तक ४, पृष्ठ ३३०,ई. स. १९४२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy