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तिलोयपण्णत्तिका गणित
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असंख्यात वर्षों की राशि कितनी ली जाय, क्योंकि असंख्यात कोई विशिष्ट संख्या नहीं है, किन्तु सीमा रूप दो असंख्यात संख्याओं के बीच में रहनेवाली कोई भी संख्या है।
(गा. १,१३२) इसके पश्चात् प्रतगंगुल = (सूच्यगुल)२-४ (प्रतीक रूपेण )
और घनांगुल %3D (सूच्यंगुल) =६ (प्रतीक रूपेण ) इस स्पष्टीकरण से ज्ञात होता है कि लिये हुए प्रतीकों में साधारण गणित की क्रियायें उपयोग में नहीं लाई गईं, जैसे सूच्यंगुल का प्रतीक २, तो सूच्यंगुल के घन का प्रतीक ८ नहीं, अपि तु ६ लिया गया। इसी प्रकार जगप्रतर का प्रतीक () और जगश्रेणी का घन लोक होता है, जिसका प्रतीक (=) है। इस प्रकार की प्रतीक-पद्धति के विकास को हम जर्मनी के नेसिलमेन के शब्दों में Syncopated और Symbolio Algebra का मिश्रण कह सकते हैं।
_जगश्रेणी इसके पश्चात् राजू' का प्रमाण =
Raju ( Chain, a linear astrophysical measure ), is according to Colebrook, the distance which a Deva flies in six months at the rate of 2,057, 152 Yojanas in one क्षण, ie. instant of time.
-Quoted by von Glassnappin
"Der Jainismus". -Foot Note-Cosmology old & New p. 105, इस परिभाषा के अनुसार राजु का प्रमाण इस तरह निकाला जा सकता है-६ माह(५४००००)x६४३०४२४४६० प्रति विपलांश या क्षण क्योंकि, ६० प्रति विपलांश = १ प्रति विपल
६० प्रति विपल = १ विपल ६० विपल = १ पल ६० पल = १ घड़ी =२४ मिनिट (कला)
.:. १ मिनिट ( कला ) = ५४०००० प्रतिविपलांश और १ योजन = ४५४५४५ मील ( या क्रोशक ) लेने पर, .:. ६ माह में तय की हुई दूरी = ४५४५.४५ x २०५७१५२
x६x३०४२४४६०४५४०००० मील
...१राजू = (१.३०८६६६६२...)४(१०)२१ मील श्री जी. आर. जैनी ने डॉ. आइंसटीन के संख्यात ( Finite.) लोक की त्रिज्या लेकर उसका घनफल निकाल कर लोक के घनफल (३४३ घन राजु) के बराबर रखकर राजु का मान १.४५४(१०)२१ मील निकाला है जो उपर्युक्त राजु मान से लगभग मिलता है । पर डॉ. आइंसटीन के संख्यात फैलनेवाले लोक की कल्पना को पूर्ण मान्यता प्राप्त नहीं है-वह केवल कछ उपधारणाओं के आधार पर अवलम्बित है। भिन्न २ कल्पनाओं के आधार पर भिन्न २ लोकों ( universes ) की कल्पनायें कई वैज्ञानिकों ने की हैं ।
रिसर्च स्कालर पंडित माधवाचार्य ने राजू की परिभाषा निम्न तरह से कही है-"एक हजार भार का लोहे का गोला, इंद्रलोक से नीचे गिरकर ६ मास में जितनी दूर पहुँचे उस सम्पूर्ण लम्बाई को एक राजू कहते हैं।"-अनेकान्त vol.1,3.
इस तरह दी गई परिभाषा से राजू की गणना नहीं हो सकती, क्योंकि इन्द्रलोक से वस्तुओं (Bodies) के गिरने का नियम ज्ञात नहीं है।
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